कूनो की धरती पर पैर जमाते चीते

Posted On:- 2025-03-04




- प्रमोद भार्गव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी चीता परियोजना को दो  साल पूरा हो गए हैं। नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो राश्ट्रीय उद्यान में प्रधानमंत्री ने छोड़ा था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते और लाकर छोड़े गए थे। नई धरती और जलवायु परिवर्तन के चलते इन चीतों को आरंभ में यहां के मौसम से तालमेल बिठाने में दिक्कतें आईं। नतीजतन छह वयस्क और यहीं पैदा हुए चार शावकों में से तीन की मौतें भी हुईं थीं, इस कारण परियोजना पर सवाल भी खड़े किए गए। अब जब दक्षिण अफ्रीका से लाकर बसाए गए 12 चीतों को 18 फरवरी को दो साल पूरे हो गए हैं, इस अवधि में इन चीतों की मृत्यु दर में कमी ने परियोजना की सफलता के प्रथम लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। इनकी जीवित रहने की दर शुरुआत में नामीबिया लाए चीतों से बेहतर है। दक्षिण अफ्रीका से आए 12 चीतों में से 33.3 प्रतिशत की मौत हुई,जबकि नामीबिया से लाए गए चीतों में से 37.5 प्रतिशत चीतों की मौत हुई। अफ्रीका से लाई गई तीन मादा चीताओं ने अब तक 12 शावकों को जन्म दिया है,जिनमें से 6 पूर्ण स्वस्थ हैं। ये चीते अब भारतीय परिवेश में न केवल पूरी तरह ढल गए हैं,बल्कि नए घर कूनो में आबादी बढ़ा रहे हैं। नए आवास स्थलों में 50 फीसदी चीतों की मौत को सामान्य माना जाता है। कूनो में अभी 12 चीते और 14 शावक जंगल में मौज मस्ती कर रहे हैं।   
एक समय था जब चीते की रफ्तार भारतीय वनों की शान हुआ करती थी। लेकिन 1947 के आते-आते चीतों की आबादी पूरी तरह लुप्त हो गई। 1948 में अंतिम चीता छत्तीसगढ़ के सरगुजा में देखा गया था। जिसे मार गिराया गया। चीता तेज रफ्तार का आश्चर्यजनक चमत्कार माना जाता है। अपनी विशिष्ट एवं लोचपूर्ण देहयष्टि के लिए भी इस हिंसक वन्य जीव की अलग पहचान थी। शरीर में इसी चपलता के कारण यह जंगली प्राणियों में सबसे तेज दौड़ने वाला धावक है।
बीती सदी में चीतों की संख्या एक लाख तक थी, लेकिन अफ्रीका के खुले घास वाले जंगलों से लेकर भारत सहित लगभग सभी एशियाई देशों में पाया जाने वाला चीता अब पूरे एशियाई जंगलों में गिनती के रह गए हैं। राजा चीता (एसिनोनिक्स रेक्स) जिम्बाब्वे में मिलता है। अफ्रीका के जंगलों में भी गिने-चुने चीते रह गए हैं। तंजानिया के सेरेंगती राष्ट्रीय उद्यान और नामीबिया के जंगलों में गिने-चुने चीते हैं। प्रजनन के तमाम आधुनिक व वैज्ञानिक उपायों के बावजूद जंगल की इस फुर्तीली नस्ल की संख्या बढ़ाई नहीं जा पा रही है। यह प्रकृति के समक्ष वैज्ञानिक दंभ की नाकामी है। जूलॉजिकल सोसायटी आफ लंदन की रिपोर्ट को मानें तो दुनिया में 91 प्रतिशत चीते 1991 में ही समाप्त हो गए थे। अब केवल 7100 चीते पूरी दुनिया में बचे हैं। एशिया के ईरान में केवल 50 चीते शेष हैं। अफ्रीकी देष केन्या के मासीमारा क्षेत्र को चीतों का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब इनकी संख्या गिनती की रह गई है। ऐसे में भारत में चीतों की वंशवृद्धि दुनिया के लिए खुशखबरी है।  
बीती सदी के पांचवें दशक तक चीते अमरीका के चिड़ियाघरों में भी थे। प्राणी विशेषज्ञों की अनेक कोशिशों के बाद इन चीतों ने 1956 में शिशुओं को जन्म भी दिया, परंतु किसी भी शिशु को बचाया नहीं जा सका। चीते द्वारा किसी चिड़ियाघर में जोड़ा बनाने की यह पहली घटना थी, जो नाकाम रही। जंगल के हिंसक जीवों का प्रजनन चिड़ियाघरों में आश्चर्यजनक ढंग से प्रभावित होता है, इसलिए शेर, बाघ, तेंदुए व चीते चिड़ियाघरों में जोड़ा बनाने की इच्छा नहीं रखते हैं। भारत में चीतों की अंतिम पीढ़ी के कुछ सदस्य बस्तर-सरगुजा के घने जंगलों में थे, जिन्हें 1947 में देखा गया था। प्रदेश अथवा भारत सरकार इनके संरक्षण के जरूरी उपाय करने हेतु हरकत में आती, इससे पहले ही चीतों के इन अंतिम वंशजों को भी शिकार के शौकीन राजा-महाराजाओं ने मार गिराया और भारतीय चीतों की नस्ल पर पूर्ण विराम लग गया था। कूनो के बाद अब मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के गांधीसागर अभ्यारण्य में चीतों का नया कुनबा बसाने की तैयारी चल रही है। इन चीतों के आहार के लिए अभी इस वनप्रांतर में 28 चीतल छोड़ दिए गए हैं।
हमारे देश के राजा-महाराजाओं को घोड़ों और कुत्तों की तरह चीते पालने का भी शौक था। चीता शावकों को पालकर इनसे जंगल में शिकार कराया जाता था। राजा लोग जब जंगल में आखेट के लिए जाते थे, तो प्रशिक्षित चीतों को बैलगाड़ी में बिठाकर साथ ले जाते थे। इनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती थी, जिससे यह किसी मामूली वन्य जीव पर न झपटे। जब शिकार राजाओं की दृष्टि के दायरे में आ जाता था, तो चीते की आंखों की पट्टी खोलकर शिकार की दिशा में हाथ से इशारा कर दिया जाता था। पलक झपकते ही शिकार चीते के जबड़े में होता। शिकार का यह अद्भुत करिश्मा देखना भी एक आश्चर्यजनक रोमांच की बात रही होगी ?
 भारत में चीतों के अलावा बाघ और हाथियों का भी संरक्षण किया जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण,वन एवं  जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार 2024 में भारतीय बाघों की अनुमानित संख्या औसतन 3682 से लेकर 3925 तक होने का अनुमान है। भारत में यह अच्छी बात है कि बाघों की संख्या में  निरंतर वृद्धि दर्ज की जा रही है। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 785 बाघ हैं। इसके बाद कर्नाटक में 563,उत्तराखंड में 560  और महाराष्ट्र में 444 बाघ हैं। भारत में कुल 54 बाघ संरक्षण अभ्यारण्य हैं। तीन नए अभ्यारण्य घोषित हुए हैं। इन सभी में बाघ संरक्षण के उपाय किए जा रहे हैं। भारत में हाथियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। 2024  में इनकी अनुमानित संख्या  28000 है। हाथी परियोजनाओं में 2017 में की गई गिनती के मुताबिक 27312 हाथी पाए गए हैं। इनकी सबसे ज्यादा आबादी कर्नाटक में है। इसके बाद असम और केरल में है। लेकिन जंगल में हाथी और बाघों का व्यवहार प्राकृतिक आवास स्थल मानव बस्तियों से घिरते जाने के कारण बदल रहा है। एक अध्यन रिपोर्ट के मुताबिक ,हाथियों ने बीते चार साल में 2243 और बाघों ने  300 लोगों के प्राण लिए हैं। ये तथ्य चौंकाने वाले जरूर हैं ,लेकिन इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। वन्य प्राणियों और मानवों के बीच संघर्ष जारी है। अतएव इनसे सुरक्षा के लिए अभ्यारण्य सीमा को निर्धारित करने के लिए मजबूत बागड़ या फिर दीवार खड़ी करने की जरुरत है।



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