- अशोक मधुप
केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद देश में नेशनल हाई−वे और एक्सप्रेस वे का निर्माण बड़ी तेजी के साथ शुरू हुआ। यह कार्य अनवरत जारी है। 2014-15 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो देश में कुल 97,830 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग थे। मार्च 2023 तक देश भर में अलग-अलग 145,155 किमी लंबे राजमार्ग हो चुके थे। ये कार्य निरंतर जारी है। राजमार्ग के साथ ही तेजी से जगह जगह स्टेट हाई वे और जिला मार्ग भी बन रहे हैं। इन मार्ग के बनाने के लिए भारी संख्या में सड़क के किनारे के पेड़ कट रहे हैं। कटने वालों पेड़ के मुकाबले लगने वाले वृक्षों की संख्या कम है। सरकारी आंकड़े हैं कि लगने वाले वृक्षों लगभग 24 प्रतिशत मर जाते हैं। ऐसे में आज जरूरत है कि किसी भी तरह का मार्ग बनाया जाए उसके किनारे के बड़े और पुरान पेड़ न काटें जाएं। उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाए।
लोकसभा में 22 जुलाई 2019 को दी गयी जानकारी में बताया गया था कि 2014 से 2019 के पांच साल के अंतराल में 1.09 करोड़ पेड़ काटने की अनुमति दी गई। सबसे ज्यादा अनुमति 2018-19 में 2691028 पेड़ काटने की दी गई। यह संख्या तो अनुमति लेकर काटे गए पेड़ों की है। मानना है कि इससे भी कई गुना पेड़ प्रति वर्ष बिना अनुमति लिए कट जाते हैं। ये काम उन अधिकारियों से मिलकर होता है, जो पेड़ों के कटान रोकने के लिए जिम्मेदार है। 13 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किए गए एक लिखित जवाब के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच देश भर में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत जितने पौधे लगाए गए थे, उसमें से 4.84 करोड़ पौधे खत्म हो गए।
उन्होंने दावा किया कि इन पांच वर्षों में कुल 20.81 करोड़ पौधे लगाए गए ।इसमें से 15.96 करोड़ पौधों को ही बचाया जा सका है। इस आधार पर यदि राष्ट्रीय औसत देखें तो प्रतिपूरक वनीकरण के तहत वन कटाई के बदले जितने पौधे लगाए जा रहे हैं, उसमें से 24 फीसदी पौधे तमाम कारणों से खत्म हो जाते हैं। एक पेड़ की कीमत जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी एक पेड़ की कीमत 74 हजार 500 रुपये प्रति सालाना हो सकती है। हर हर साल बीतने के साथ ही उसकी कीमत में ये राशि जुड़ जाती है। इस एक पेड़ की कीमत से हम अनुमान लाग सकते है कि प्रतिवर्ष लाखों पेड़ काट कर देश की कितनी बड़ी संपदा का हम दौहन कर रहे हैं।
विकास के लिए जहां पेड़ों का कटना जरूरी है वहीं समय की जरूरत कुछ और है। वनों का तेजी के साथ दोहन होने से पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जलवायु बदल रही है। सासों पर संकट बढ़ रहा है। पोल्यूशन बढ़ने के कारण आक्सीजन मिलना दुर्लभ होता जा रहा है। इसी से महानगरों में आदमी की आम आयू कम हो रही है। इसीलिए आज जरूरी हो गया है कि विकास के लिए पेड़ों को न काटा जाए। इन पेड़ों को काटने की जगह यदि इन्हें दूसरी खाली जगह पर ले जाकर लगाया जाए तो समस्या का निदान हो सकता है। कुछ जगह पर यह कार्य हुआ भी है। गाजियाबाद-दिल्ली ऐलिवेटेड रोड को बनाते समय 64 पेड़ उठाकर दूसरी जगह लगाए गए। उत्तराचंल में भी कईं साल पहले यह कार्य हुआ। इसके लिए हम यह कर सकतें हैं कि छोटे पेड़ काट दिए जाएं किंतु बड़े पेड़ दूसरी जगह लगा दिए जाएं। पेड़ का लगाना बहुत सरल है। उसे देखरेख करना बड़ा करना बहुत ही कठिन है।
पेड़ों के दोहन में सरकारी नीति भी जिम्मेदार है। नियम है कि पेड़ के काटने के आवेदन के साथ-साथ यह वायदा कराया जाता है कि आज कटे एक पेड़ की जगह दो पेड़ लगाएंगे। प्रति पेड़ काटने के लिए वन विभाग को दो सौ रुपया प्रति पेड़ सुरक्षा धन जमा करना होता है। पेड़ लगाकर वन अधिकारी को आप दिखा देंगे कि पेड़ लगा दिए तो सुरक्षा धन वापस हो जाएगा। आज के समय में दो सौ रुपये कोई मूल्य नहीं रखता । इसलिए कोई पेड़ लगाता नहीं। वन अधिकारी ये दो सौ रुपया सुरक्षा राशि जब्त कर लेते हैं। इस राशि से विभाग बरसात में वृक्षारोपण करता है। पेड़ लगवाने हैं तो हमें यह दो सौ की सुरक्षा राशि बढ़ाकर कम से कम पांच हजार करनी होगी। यह भी आदेश करना होगा कि दस साल से बड़े पेड़ कटेंगे नहीं। दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिए जाएंगे।
एक बात और अवैध रुप से पेड़ कटान का दंड पांच हजार रुपया है। न पकड़े गए तो कुछ भी नहीं। पकड़े जाने पर वन अधिकारी खेल कर लेते हैँ। कटते सौ पेड़ हैं दिखाते दस है। इसी तरह से कम पेड़ की अनुमति लेकर ज्यादा पेड़ काटे जाने का प्रायः चलन है। किसान को जरूरत के लिए अपनी भूमि से वृक्ष काटने की अनुमति हो किंतु अवैध रूप से पेड़ काटने पर एक पेड़ पर कम से कम 50 हजार रुपया जुर्माना और छह माह की सजा का प्राविधान होना चाहिए। कोई भी सड़क या उद्योग का प्रोजेक्ट पास करने से पहले पूछा जाना चाहिए कितने पेड़ हैं? दस साल से ज्यादा आयु के पेड़ की संख्या और उससे बड़े इन पेड़ों को किस जगह लगाया जाएगा इस योजना और बजट की जानकारी भी दें। ऐसा करने से हमको ज्यादा पेड़ नहीं लगाने पड़ेंगे। हमारी भूमि भी हरी भरी रहेगी।
पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम कर रहे जानकार बताते हैं कि पौधारोपण के नाम पर आमतौर पर सजावटी और विदेशी पौधे रोप दिए जाते हैं जो कम समय में बड़ा आकार ले लेते हैं लेकिन वे किसी भी दृष्टि से पर्यावरण के लिए लाभकारी नहीं होते। इस बात की निगरानी होनी चाहिए और साथ ही जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए कि काटे गए पेड़ों के स्थान पर ईमानदारी से पौधारोपण कर हरियाली को बरक़रार रखने की कवायद हो। पेड़ फलदार हों या परम्परागत भारतीय पेड़ लगे। पीपल, वटवृक्ष, नीम, पिलखन, साल, शीशम, जामुन और आम जैसे वृक्ष प्रमुखता से लगाए जाएं।
- अशोक मधुप
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