होलिका, सीता हो या पद्मावती समाज उन्हीं औरतों को पूजता है जो जल के मरने को तैयार हों वरना ज़िंदा रहने और लड़ने वाली औरतों को या तो फूलन देवी या फिर शूर्पणखा कह कर हंसी उड़ाई जाती है। 8 मार्च मातृ शक्ति को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओ के सम्मान में जगह जगह समारोह, भाषणबाजी, बड़े-बड़े संकल्प , उनके उत्थान के दावे वादे होंगे , कुछ महिलाओं को सम्मानित भी किया जाएगा। खबर नविशो को बुला कर चाय नास्ते के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस भी होगी ,कुछ छपास रोगी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री पा लेंगे और इस तरह साल में एक दिन मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाकर महिलाओं को साल के 364 दिन उनके हालात पर छोड़ सब अपने अपने मतलब की दुनिया मे व्यस्त हो जाएंगे ।
आखिर कब तक महिलाएं महज विचार-विमर्श , खबरों और भाषणों की विषय वस्तु बनकर रहेंगी । अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं का सम्मान होना अच्छी बात है बल्कि उनका सम्मान तो रोज़ होना चाहिए। घर से लेकर बाहर तक वे जिस बखूबी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाती आ रही हैं । फिरबात घर के चौके चूल्हे, बच्चे सम्हालने की हो ,समाज सेवा की हो या राजनीति के अखाडे मे दम आजमाने की आज महिलाये किसी क्षेत्र मे पीछे नही है ।
त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव मे पचास प्रतिशत आरक्षण दे कर सरकार ने महिलाओ को राजनीति मे ज्यादा से ज्यादा भागीदारी का अवसर तो दिया है । राजनीति मे आरक्षण के चलते महिलाएं भले ही कुर्सियों तक पहुॅच गई किंतु राज आज भी उन कुर्सियों पर पति , पुत्र या ससुर रूपी पुरूष का चलता है । हालात यह है पंचायतों में सरपंच और पंच महिलाओं की जगह उनके पतियों ने पद व गोपनीयता की शपथ ले डाली और शासन प्रशासन भी अपनी नाक बचाने सचिवों पर निलंबन की गाज गिरा कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री पा रहा जबकि होना यह चाहिए था कि ऐसी सरपंच व पंचों को पद के अपात्र घोषित किया जाता और पतियो व पुत्रों के खिलाफ धोखाघड़ी का मामला दर्ज हो जेल भेजा जाता है । ग्राम , जनपद व जिला पंचायतों में आजकल सरपंच पति को एस पी कहा जाने लगा जो पत्नियों की जगह हस्ताक्षर करते देखे जा सकते जिसे जानते सब है पर कार्यवाही कोई नही करना चाहता एकाध चेतावनी पत्र के अलावा ।
वैसे राजनीति मे गिनी चुनी महिलाये अपनी स्वतंत्र पहचान बना पायी है । राजनैतिक दल परिवार वाद से दूर होने की बाते करते हो परन्तु टिकट देते वक्त पत्नि मॉ या बहन ही दिखायी देती है । राजनीति से दूर दूर तक वास्ता ना रखने वालो को सिर्फ परिवार वाद के कारण ही टिकट मिल जाती है । ऐसे मे महिलओ को अपनी पहचान बताने पति के नाम का पुछल्ला लगाना ही पडता है । कुछ भी हो विकास के दावे वादों के बीच आज भी देश में लड़के की चाह में कोख में ही बच्चियों को मार दिए जाने की ख़बरें अक्सर आती हैं। कम उम्र में लड़कियों की शादी की ख़बरें अखबारों की सुर्खिया बनती है । सरकार को आज भी बड़े-बड़े पोस्टर लगाकर और नारे लिखकर बताना पड़ता है कि बेटी है तो कल है , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ । इन सारी बातो के बीच आज कई महिलाऐं समाज मे अपनी अलग पहचान बना कर समाज के विभिन्न क्षेत्रो मे सफलता पूर्वक अपना नाम रोशन कर रही है । परन्तु चिन्ता का विषय है कि इनकी संख्या अब भी उंगलियो में गिनी जा सकने लायक ही है।
चलते चलते एक सवाल :-
शिक्षा व्यवस्था का भट्ठा बैठते लापता गुरुजी , दारू पी कर आते गुरुजी , अवैध वसूली करते गुरुजी की शिकायतों पर निलंबन की कार्यवाही की जगह बचाने व मनचाही जगह अटेचमेंट के खेल में 50 की वसूली की चर्चा सच है या कोरी अफवाह ?
और अंत में :-
पत्थर को शिकायत है कि,
पानी की मार से टूट रहे है हम ।
पानी का गिला ये है कि ,
पत्थर हमें खुलकर बहने नही देते ।।
#जय_हो 8 मार्च 2025 कवर्धा (छत्तीसगढ़)
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