AI और महिला सशक्तिकरण: डिजिटल युग में समानता की ओर बढ़ते कदम

Posted On:- 2025-03-12




-सावित्री ठाकुर (महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री, भारत सरकार)

आज के इस तेज गति वाली 21वीं सदी में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में नित नई संभावनाएँ उभर रही हैं, विशेष रूप से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी तकनीकों के माध्यम से। एआई न केवल महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार के नए अवसर प्रदान कर सकता है, बल्कि उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी समान भागीदार बनाने में मदद कर सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने G20 समिट से लेकर वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम तक, हर मंच पर ‘वूमेन-लेड डेवलपमेंट’ को बढ़ावा देने की बात कही है। इसके तहत महिलाओं को केवल विकास का लाभार्थी ही नहीं बल्कि नेतृत्वकर्ता भी माना जा रहा है। एआई  इस दृष्टि से कई प्रकार से देश की विकास यात्रा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ा सकता है। चाहे रोजगार के नए अवसरों का सृजन करना हो या शिक्षा एवं कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सुगम बनाना, एआई  हर क्षेत्र में अहम भूमिका निभा सकता है।

महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने में भी एआई महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। घरेलू हिंसा और उत्पीड़न की निगरानी के लिए एआई आधारित डेटा एनालिटिक्स और मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किए जा सकते हैं, जो महिलाओं के खिलाफ अपराधों को चिन्हित करने और उनके रोकथाम में मदद करेंगे। इसके अलावा, एआई-पावर्ड चैटबॉट्स कानूनी और सुरक्षा संबंधी सलाह देने में मददगार हो सकते हैं, जिससे महिलाएं किसी भी परिस्थिति में त्वरित सहायता प्राप्त कर सकें। इन चैटबॉट्स का इस्तेमाल विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के पोर्टल पर भी किया जा सकता हैं जिससे महिलाओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी और आवेदन प्रक्रिया के बारे में आसानी से पता चल सकें।
 
डेटा एनालिटिक्स की मदद से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सरकारी योजनाओं का लाभ समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचे। एआई संचालित डिजिटल वेरिफिकेशन के जरिए फ़र्जी लाभार्थियों की पहचान कर जरूरतमन्द लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा सकता है।

एआई के उपयोग को लेकर 2018 में, भारत सरकार ने ‘नेशनल स्ट्रैटेजी फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की शुरुआत की, जिसका मकसद कुछ खास क्षेत्रों में एआई के विकास को बढ़ावा देना था। वर्ष 2021 में, ‘रिस्पॉन्सिबल एआई’ पर एक ड्राफ्ट पेश किया गया, जिसमें नैतिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दिया गया। इस नेशनल स्ट्रैटेजी को ‘एआइ फॉर ऑल’ की थीम पर तैयार किया गया है।

विगत वर्ष, प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ‘मेकिंग एआई इन इंडिया’ और ‘मेकिंग एआई वर्क इन इंडिया’  के विज़न पर चलते हुए 10,371.92 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ राष्ट्रीय स्तर के इंडिया एआई मिशन को मंजूरी दी थी। ये मिशन, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में रणनीतिक कार्यक्रमों और साझेदारियों के माध्यम से एआई नवाचार को बढ़ावा देने वाला एक वृहद इकोसिस्टम स्थापित करेगा।

हाल ही में, प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और फ़्रांस की सह-अध्यक्षता में आयोजित पेरिस एआई शिखर सम्मेलन 2025 में एआई को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने पर जोर दिया था, ताकि यह सभी वर्गों के लिए उपयोगी साबित हो सके। इसी संदर्भ में, एआई महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक हिंसा की रोकथाम में भी अहम भूमिका निभा सकता है। एआई-आधारित निगरानी प्रणाली सार्वजनिक स्थलों पर लड़कियों के साथ होने वाले छेड़छाड़ की घटनाओं की पहचान कर अपराधी को चिन्हित करने में मदद कर सकती है। साइबर सुरक्षा में एआई का उपयोग ऑनलाइन उत्पीड़न और साइबर बुलिंग जैसी समस्याओं से निपटने में किया जा सकता है। इसके अलावा, एआई-आधारित आपातकालीन अलर्ट सिस्टम महिलाओं को तुरंत सहायता प्रदान करने में मदद कर सकता हैं, जिससे उनकी सुरक्षा और भी सुदृढ़ होगी।

स्वास्थ्य सेवाओं में एआई का उपयोग भी महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकता है। हाल ही में स्वीडन में हुई एक क्लीनिकल स्टडी में पाया गया कि एआई आधारित मैमोग्राफी सिस्टम 29% अधिक स्तन कैंसर के मामलों की पहचान कर सकता है। इसके अलावा, एआई-आधारित प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स डॉक्टरों को जटिल बीमारियों की पहचान करने और उनके उपचार में मदद कर सकता है। खासकर, यह तकनीक हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान कर सकती है और संभावित जटिलताओं को रोकने में सहायक हो सकती है।

‘विकसित भारत 2047’ के विजन के तहत, भारत को एक सशक्त एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें महिलाओं की समान भागीदारी आवश्यक है। एआई न केवल महिलाओं के लिए नए अवसरों का सृजन कर सकता है, बल्कि उन्हें समाज में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए सक्षम भी बना सकता है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एआई केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है। यह तकनीक एक समावेशी और प्रगतिशील समाज की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसका उपयोग केवल आर्थिक या तकनीकी उन्नति तक सीमित न रहें, बल्कि इसे महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तक सुगमता से पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भी उपयोग किया जाए।



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