रायपुर दक्षिण विधानसभा कई चुनावों से भाजपा का अभेद्य किला है।यहां से लगातार चुनाव बृजमोहन जीतते रहे हैं, उनके सांसद बनने पर उनकी विधानसभा सीट से पूर्व सासंद सुनील सोनी को टिकट दिया गया।यानी भाजपा ने इस विधानसभा से पहली बार बृजमोहन की जगह किसी और को टिकट दिया। कांग्रेस के लिए देखा जाए तो यह भाजपा को हराने का अच्छा मौका था क्योंकि पहली बार दक्षिण से बृजमोहन प्रत्याशी नहीं थे। कांग्रेस ने किसी बड़े नेता को यहां चुनाव जीतने के लिए टिकट देने की जगह हमेशा की तरह हारने के लिए नए चेहरे आकाश शर्मा को टिकट दिया और कांग्रेस का नया चेहरा फिर से रायपुर दक्षिण से हार गया।
माना जाता है कि कांग्रेस इस सीट को जीतना ही नहीं चाहती है, इसलिए वह पुराने आदमी को यहां से टिकट देने की जगह नए आदमी को टिकट देती है और वह खुद तो जीत नहीं पाता है, कांग्रेस पार्टी भी उसे जिता नहीं पाती है। किसी प्रत्याशी को जिताना पार्टी का भी काम है। पार्टी को उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है।कांग्रेस नेताओं ने आकाश शर्मा को टिकट दे दी और छोड़ दिया कि जाओ जीतकर दिखाओ।ऐसा कभी नहीं लगा कि आकाश शर्मा के साथ पूरी पार्टी है, उसे जिताने के लिए पार्टी के नेता जी तोड़ मेहनत कर रहे है। कांग्रेस की बैठकें हुई, नेताओं ने घर-घर जाकर कांग्रेस के लिए वोट मांगा तो जनता ने वोट क्यों नहीं दिया। आकाश शर्मा व कांग्रेस नेता तो कहते थे भाजपा ने निष्क्रिय नेता को टिकट दे दिया है। कांग्रेस ने सक्रिय जवान नेता को टिकट दिया है।
इस चुनाव से साबित हुआ है कि नेता के निष्क्रिय या सक्रिय होने से कुछ नहीं होता, कुछ होता है जब उसके साथ पार्टी होती है, जब उसके साथ पार्टी के नेता होते हैं। सोनी की जीत का एक कारण तो यही है कि उसे पार्टी ने टिकट दे दिया तो उसे जिताने की जिम्मेदारी सरकार, पार्टी से लेकर नेताओं की हो गई और सबने मिलकर उसे जिता दिया।ऐसी होनी चाहिए पार्टी जैसे ही उसे टिकट मिले तो उसे जिताने का जिम्मेदारी पार्टी की हो जाती है, यही काम कांग्रेस नेता नहीं कर सके।कांग्रेस नेताओं को सीखना चाहिए कि पार्टी ने जिसे टिकट दे दिया सब नेता मिलकर कैसे जिताते है।
सोनी की जीत में बृजमोहन की अहम भूमिका रही। उन्होंने विधानसभा क्षेत्र के लोगों को लगातार आश्वस्त किया कि अब आपको एक नहीं सेवक मिलेंगे,यानी उन्होंने लोगों से कहा कि वह सोनी को जिताएंगे तो वह भी उनकी तरह लोगों की सेवा करेंगे। वह हमेशा सोनी के साथ रहे, सोनी को जिताने के लिए जितना वह कर सकते थे, उससे ज्यादा किया। इसी का परिणाम है कि सुनील सोनी अच्छे खासे वोटों से जीते है। बताया जाता है कि जब मतगणऩा शुरू हुई तो कोई चरण ऐसा नहीं था जिसमें सुनील सोनी ने आकाश शर्मा से बढ़त न ली हो। हर चरण में सुनील सोनी से बढ़त ली, एक बार बढ़त ली तो फिर उनकी बढ़त कम नहीं हुई।
बताया जाता है कि महापौर एजाज ढेबर के वार्ड से सुनील सोनी को ज्यादा वोट मिले हैं और आकाश को कम वोट मिले हैं। इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है कि महापौर ने अपने वार्ड में आकाश को ज्यादा वोट दिलाने के लिए कुछ खास नहीं किया। हर वार्ड में भाजपा को ज्यादा वोट मिले हैं तो इसका मतलब है उसने ज्यादा मेहनत की, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंची, उससे वोट मांगा और उसे वोट मिला भी। कांग्रेस यह भी नहीं कर सकी तो उसके अध्यक्ष से लेकर तमाम नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि वह एक उपचुनाव कांग्रेस को नहीं जिता पाए।
आकाश शर्मा को समझ आ गया होगा कि चुनाव जिताने में सहयोग करने वाले कांग्रेस में कम होते हैं और हराने वाले ज्यादा होते हैं।आकाश शर्मा को यह भी समझ में आ गया होगा कि कभी कांग्रेस का टिकट मिलने का मतलब होता था कि जीत तय है लेकिन अब वक्त बदल गया है टिकट मिलने का मतबल अब जीत तय नहीं है। हारने की संभावना ज्यादा है क्योंकि ऊपर राहुल गांधी से लेकर नीचे भूपेश बघेल जैसे नेताओं की छवि चुनाव जिताने नहीं हराने वाले नेता की बनकर रह गई है। फिर भी आलाकमान उनको चुनाव जिताने के लिए महाराष्ट्र भेजता है, हुआ क्या महाराष्ट्र में कांग्रेस बुरी तरह हारी है, ऐसा तो होना ही था क्योंकि भूपेश बघेल जैसे नेता चुनाव जिताने वाले नेता नहीं रह गए हैं।
वक्त बदलता है लोग भी बदलते हैं, बदलना ही पड़ता है,वक्त के साथ चलने के लिए बदलना जरूरी होता है। जो लोग नहीं बदलते हैं वह अतीत में जीते रहते हैं,
राहुल गांधी तो राहुल गांधी हैं। अपनी मौज में रहते हैं। कब क्या कहेंगे,कब क्या करेंगे यह तो उऩके अलावा कोई जानता नहीं है।
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