आलाकमान ने वाकई सही आदमी को चुना है

Posted On:- 2024-12-09




सुनील दास

राजनीति में चुनाव होते रहते हैं,चुनाव में हार-जीत भी होती रहती है।जीतने वाले जश्न मनाते हैं और हारने वाले पहले हार के बहाने ढूंढते है, कह देते हैं कि रिजल्ट हमें अस्वीकार्य है। जैसे उनके रिजल्ट को नकार देने से रिजल्ट बदल जाएगा या जनता उनको हारा हुआ नहीं मानेगी।रिजल्ट को अस्वीकार कर देने से या ईवीएम में गड़बड़ी, चुनाव ने निष्पक्ष चुनाव नहीं कराया कह देने से रिजल्ट बदलता नहीं है। जनता आपकी बात पर भरोसा नहीं करती है, जनता एक बात जानती है कि चुनाव में एक राजनीतिक दल जीतता है और बाकी राजनीतिक दल हारते हैं। एक राजनीतिक दल जीतता है तो इसलिए जीतता है कि जनता ने उस पर भरोसा किया, बाकी राजनीतिक दल हारते हैं तो इसलिए कि जनता ने उन पर भरोसा नहीं किया।

हारने वाले दलों में बहुत कम दल ऐसे होते हैं जो हारने पर यह जानने का प्रयास करते हैं कि हम हारे तो क्यों हारे, हम बुरी तरह हारे तो क्यों हारे। इससे हार के हजार कारणों का पता चल सकता है। जैसे जीत के कई कारण होते हैं, वैसे ही हार के कई कारण होते है। जैसे सबसे पहले प्रत्याशी चयन में देरी, कमजोर प्रत्याशी होना, पार्टी की निचले स्तर पर संगठन न होना, पार्टी का प्रचार ठीक न होना, धन की कमी होना, सीटों को लेकर नेताओं के गुटों के बीच लडा़ई, एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी, एक गुट के नेता का प्रचार न करना, एक गुट को ज्यादा महत्व दे देना, सत्तारूढ़ दल के मुकाबले चुनाव जीतने की रणनीति न बना पाना, अतिआत्मविश्वास कि हम तो जीत रहे हैं। आलाकमान का राज्य के नेताओं पर कंट्रोल न होना।इसके अलावा भी बहुत से कारण हो सकते हैं।

बाकी दल तो हार के कारणों का पता लगाने का प्रयास चुनाव का रिजल्ट आने के कुछ दिनों बाद ही शुरू कर देते हैं। जैसे भाजपा चुनाव लोकसभा चुनाव में यूपी में कम सीटें जीती तो कई तरह की समितियों ने हार के कारणों का जानने का प्रयास किया और उसे दूर करने की कोशिशें हुई। इसका परिणाम हाल के यूपी के उपचुनावों में देखने को मिला जब भाजपा ने नौ में से सात सीटें जीतकर सपा को बता दिया कि यूपी में भाजपा को हराना आसान नहीं है, भाजपा मजबूत है और मजबूत रहेगी क्योंकि वह हार से सबक लेती है, गलतियों को सुधारती है।

भाजपा की तुलना में कांग्रेस अलग ही पार्टी है।वह चुनाव हारती है तो पहले तो हार को स्वीकार नहीं करती है, वह कुछ दिन यही कहती रहती है कि हम हारे नहीं हैं, हमको तो ईवीएम में गड़बड़ी करके हराया गया है, आयोग ने चुनाव निष्पक्ष नहीं कराया इसलिए कांग्रेस हार गई। ऐसा करके वह अपने नेता राहुल गांधी को हारा हुआ नेता नहीं बताने का प्रयास करती है, हराया गया नेता है ऐसा बताने का प्रयास करती है। लेकिन सच को तो कोई भी पार्टी हो उसको स्वीकारना पड़ता है। 

कांग्रेस ने कार्यसमिति की बैठक में सच को स्वीकारा, अध्यक्ष खरगे ने स्वीकारा कि हम क्यों हरियाणा चुनाव हारे। अब हरियाणा चुनाव के दो महीने बाद कांग्रेस ने हरियाणा में हुई हार के कारणों का पता लगाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है। कांग्रेस हाईकमान ने इसका अध्यक्ष भूपेश बघेल को बनाया है, भूपेश बघेल हरियाणा जाएंगे और वहां के सीनियर नेताओं से चर्चा करेंगे कि कांग्रेस हरियाणा का चुनाव जीत रही थी, हार कैसे गई।वैसे आलाकमान ने हरियाणा की हार का पता लगाने के लिए सही आदमी को चुना है। हरियाणा से पहले छत्तीसगढ़ में भी तो कांग्रेस चुनाव जीतते हार गई थी। सर्वे में कांग्रेस जीत रही थी, भूपेश बघेल निरंतर दावा कर रहे थे कि हमने काम किया है, इसलिए जनता हमें जिताएगी। हम तो हार ही नहीं सकते। जीतते जीतते हारने का शानदार अनुभव भूपेश बघेल हो, इसलिए वह हरियाणा में जरूर पता लगा सकते हैं कि यहां कांग्रेस क्यों हारी वह जीतते जीतते हुए क्यों हारी।

छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस चुनाव हारी थी तो भी हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक समिति का गठन किया गया था। समिति ने यहां के नेताओं के साथ बैठकर बात की थी और पता लगाया था कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतते जीतते क्यों हार गई थी। लेकिन इस समिति की रिपोर्ट का क्या हुआ पता नहीं चला, कांग्रेस में ऐसा ही होता है,चुनाव हारने पर समिति बनाई जाती है, समिति अपनी रिपोर्ट देती है लेकिन उस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया नहीं जाता है।अगर छत्तीसगढ़ की रिपोर्ट को ही गंभीरता से लिया गया होता तो उससे यह तो पता चलता कि कांग्रेस चुनाव जीतते जीतते कैसे चुनाव हार जाती है। कांग्रेस को पता चलता तो वह हरियाणा व महाराष्ट्र में जीतते जीतते बुरी तरह हारती नहीं.

कांग्रेस अपनी गलतियों से सबक नहीं लेती है।हार के लिए किसी को दोषी नहीं मानती है, इसलिए सब बेखौफ रहते हैं कि चुनाव हारने पर कुछ नहीं होता है। हम तो अपने पद पर बने रहेंगे। कांग्रेस कई राज्यों में चुनाव हार चुकी है,लेकिन वह हार से कुछ सीखती नहीं है, यही उसकी सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए वह कितनी चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए समितियां बना लें,उसकी हार का सिलसिला रुकने वाला नहीं है।



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