राहुल गांधी तो राहुल गांधी हैं। अपनी मौज में रहते हैं। कब क्या कहेंगे,कब क्या करेंगे यह तो उऩके अलावा कोई जानता नहीं है।पार्टी के लोगों की बड़ी जिम्मेदारी होती है कि राहुल गांधी ने जो कुछ कहा है उसे सही साबित करें, जो किया है, उसे सही साबित करें। वे कांग्रेस के बड़े नेता हैं, अपनी मर्जी से काम करते हैं, जो सोच लिया वही सही है,सोच लिया सही है तो वह उस मुद्दे को छोड़ते नहीं है। चाहे पार्टी को नुकसान हो जाए चाहे संसद को नुकसान हो जाए। कई बार नुकसान होने के बाद उनको एहसास कराया जाता है कि इतना नुकसान हो गया है तो नुकसान की भरपाई के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर सोचते हैं और नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करते हैं तब तक जो नुकसान हो चुका रो चुका होता है, वह हो चुका होता है।
अडानी के मामले में पहले दिन से रोज हंगामा होने के कारण संसद में कामकाज बहुत कम हुआ है, इतना कम हुआ है कि कहा जा सकता है कि संसद ११ दिन से ठप है।जब संसद में कामकाज ही नहीं होना है तो संसद सत्र बुलाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। संसद सत्र तो बुलाया इसलिए जाता है कि सांसद अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाएंगे और सरकार से सवाल पूछेंगे। सरकार से मांग करेंगेे।देश की जनता की समस्याओं पर बहस करेंगे। सरकार देश व जनहित में कानून बनाएगी।सांसद सवाल पूछेंगे तो सरकार की तरफ से उसका जवाब दिया जाएगा।
संसद चर्चा करने की जगह है, बहस करने की जगह है, हंगामा करने की जगह नहीं है जनता जिन लोगों को सांसद चुनती है उनको इसलिए चुनती है कि वह अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाएंगे, उस पर सरकार से जवाब चाहेंगे। जनता सांसद हंगामा करने के लिए किसी को चुनती नहीं है। लेकिन हर सत्र में कुछ सांसदों का आचरण देखा जाए तो लगता है कि जनता ने इनको इसी काम के लिए चुना है।संसद मेें १० दिन हंगामा के बाद राहुलगांधी को ख्याल आया कि संसद चलनी चाहिए,चर्चा होनी चाहिए। राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष होने के नाते पहले दिन से ही इस बात का खास ख्याल रखना था कि संसद चलनी चाहिए, संसद में बहस होनी चाहिए।१० दिन बाद यह ख्याल आया चलो देर से ही सही संसद चलनी चाहिए, संसद में चर्चा होनी चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष होने के नाते राहुल गांधी को मालूम होना चाहिए कि संसद नहीं चलने से सरकार को कोई नुकसान नहीं होता है। वह तो अपने बिल संसद के आखिरी दो तीन दिन में पास करवा लेती है। सरकार का कोई काम नहीं रुकता है, उसका काम तो चलता रहता है। संसद नहीं चलने से पूरा नुकसान तो विपक्ष का होता है क्योंकि उसको मुद्दे उठाने का मौका नहीं मिलता, उस पर चर्चा करने का मौका नहीं मिलता,सरकार से अपने सवालों का जवाब मांगने का मौका नहीं मिलता।सरकार की आलोचना करने का मौका नहीं मिलता है, सरकार को घेरने का मौका नहीं मिलता है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को दस दिन बाद सही संसद चलने व चर्चा होने को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला चर्चा की तो यह अच्छी बात है।
अभी भाजपा वालों ने अपना रुख साफ नहीं किया है कि वह क्या चाहते हैं।संसद में शुरू के दिनों में तो राहुल गांधी व विपक्ष के सांसद अडानी के मुद्दे को लेकर संसद चलने नहीं दे रहे थे। और सरकार से कह रहे थे कि संसद चलाने की जिम्मेदारी तो सरकार की है. जो नहीं कहा गया वह यह था कि सरकार चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की तो है ही नहीं। विपक्ष काम तो एक बड़े मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछना है, सरकार जवाब न दे, चर्चा न कराए तो हंगामा करना है। पिछले कुछ दिनों से भाजपा वालों ने जार्ज सोरोस के मुद्दे को लेकर राहुल गांधी व सोनिया गांधी से कई सवाल पूछे हैं तथा उसका जवाब देने को कहा है, कांग्रेस की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया है।बस इतना कहा गया है कि अडानी के मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए सोरोस का मुद्दा लाया गया है। भाजपा सोरोस के मुद्दे पर रोज कांग्रेस से सवाल पूछ रही हैऔर इसे लेकर संसद में हंगामा हो रहा है।
पहले सिर्फ कांग्रेस संसद नहीं चलने दे रही थी, अब तो भाजपा भी उसी रास्ते पर चल निकली है। संसद चलाना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है तो भाजपा की भी जिम्मेदारी नहीं है। उसको भी अपने सवालों के जवाब चाहिए। जब तक जवाब नहीं दिया जाएगा, सवाल रोज पूछे जाते रहेंगे। बहुत दिनों बाद संसद में भाजपा आक्रामक हुई है या कहें कि कांग्रेस ने आक्रामक होने पर मजबूर कर दिया।वह कांग्रेस के हंगामें का जवाब हंगामे से दे रही है और अब कांग्रेस वाले चाहते हैं कि संसद चलनी चाहिए। कांग्रेस व राहुल गांधी को रास्ते पर भाजपा ने यह अच्छा तरीका खोजा है कि कांग्रेस हंगामा करती है तो उससे ज्यादा हंगामा करो।वह संसद नहीं चलने देती है, खुद भी उससे ज्यादा संसद न चलने दे और एहसास कराए कि हम जो कर रहे हैं वह गलत है तो आप जो कर रहे थे वह भी गलत है।
भाजपा से पहले टीेएमसी व सपा ने भी कांग्रेस को उसकी गलती का एहसास कराने का प्रयास किया था कि अडानी का मुद्दा बड़ा मुद्दा नहीं है, संभल का मुद्दा बड़ा मुद्दा है लेकिन राहुल गांधी को यह बात समझ नहीं आई। एक दिन संभल जाने को निकले और फिर से अडानी के मुद्दे पर संसद परिसर में रोज नया नाटक, ऐसा नाटक कि सब कह रहे हैं कि इन लोगों को संसद की गरिमा व परंपराओं का जरा भी ख्याल नहीं है। बाद में विपक्ष के नेता जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ लामबंद होने लगे तो कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हो रहा है, वह संसद चलने देना चाहती है, बहस होने देना चाहती है।
विपक्ष को एकजुट करने राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया। इस पर विपक्ष के ५० से ज्यादा सांसदों ने दस्तखत किए हैं लेकिन कांग्रेस की यह कवायद हो या राहुल गांधी संसद चलने देने के लिए ओम बिरला से मिलने की कवायद हो। कुछ भी काम नहीं आने वाला है। इंडी गठबंधन की अगली बैठक में ममता बैनर्जी को गठबंधन की कमान सौंप दी जाएगी, लालू प्रसाद ने कह दिया मतलब बात अब फाइनल हो गई है।
गठबंधन की कमान ममता को सौंपने के साथ ही यह बात भी साफ हो जाएगी राहुल गांधी को बहुत समय दिया गया गठबंधन को चलाने व भाजपा को हराने के लिए लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके। वह अयोग्य साबित हुए हैं। यह राहुल गांधी का दूसरी बड़ी असफलता होगी क्योंकि पहली बड़ी असफलता तो वह अब तो मोदी को लोकसभा चुनाव में हरा नहीं सके हैं। वह मोदी के सामने हारे हुए नेता है, इसलिए सबके सामने हारे हुए नेता हैं। हारे हुए नेता को कोई नेतृत्व के लायक नहीं समझता है क्योंकि उसको नेतृत्व सौंपने का मतलब होता है कि अगली हार तय है।
किसी भी राजनीतिक दल को बोलने का मौका मिलता है तो ज्यादा नहीं बोलना चाहिए।ऐसा नहीं कहना चाहिए कि ऐसा तो उस पार्टी में हो सकता है।हमारी पार्टी के लोग...
हर सरकार सोचती है कि उसे जनहित व देशहित में कुछ तो ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसका नाम भविष्य में लिया जाता रहे। इसलिए कई सरकारें पुरानी नीतियों को ब...
कोई भी सरकार हो वह भ्रष्टाचार पर पूरी तरह रोक नहीं लगा सकती।खासकर प्रशासनिक स्तर पर जो भ्रष्टाचार होते हैं
हर आदमी की स्वाभाविक इच्छा होती है कि देश,राज्य,शहर,वार्ड,परिवार में उसे उसके किसी अच्छे काम के लिए याद किया जाए।
.देश में कहीं मुसलमान वोट बैंक के लिए दलों के बीच होड़ लगी रहती है कि देखो तुम्हारी चिंता हम करने वाले है, देखो,तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहने वाले ह...
अगर किसी राजनीतिक दल का पूरा इतिहास संविधान विरोधी और संविधान निर्माता विरोधी हो तो उसके सबसे बड़े नेता को संविधान रक्षक बनने का प्रयास नहीं करना च...