विश्व राजनीति में कोई भी देश किसी के साथ हमेशा नहीं रहता है। विश्व के बड़े देशों के राजनीतिक,आर्थिक समीकरण बदलते रहते हैं। इसका कोई तय समय तो नहीं रहता है लेकिन दुनियां के सबसे बड़े देशों में जब राजनीतिक नेतृत्व बदलता है और वह साहसी नेता होता है,परंपरागत राजनीति के नुकसान को देख पाता है तो उस देश की राजनीति तो बदलती ही है, विश्व के देशों के बीच बना राजनीतिक समीकरण भी बदलता है। विश्व की महाशक्तियों को इस बात की चिंता होने लगती है कि कहीं वह विश्व राजनीति में अकेला तो नहीं हाे जाएगा। इसलिए वह बड़े देशों में से कुछ देशों को अपने साथ जोड़ना चाहता है।
चीन भी विश्व की पांच महाशक्तियों में एक है वह भी सभी महाशक्तियों की तरह चिंतित है और विश्व की बदलती राजनीति के बीच वह अपने लिए नए दोस्त तलाश रहा है।यही वजह है कि उसकी भारत के लिए बोली जाने वाली भाषा बदल गई है।ट्रंप के पहले तक विश्व राजनीति में अमरीका सहित नाटो देश एक तरफ थे। चीन,रूस एक तरफ थे। विश्व के देश और महाशक्तियां दो हिस्सों में बंटी हुई थी। एक तरफ अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन थे और दूसरी तरफ रूस और चीन थे इससे दोनों के बीच शक्ति संतुलन था।कोई भी किसी पर हमला नहीं करता था। इससे विश्व में बड़े देशों के बीच शांति बनी रहती थी। वे आपस में नहीं लड़ते थे। दोनों समूहों के अलावा जो देश होते हैं, वहां युध्द होते रहते हैं और इसके पीछे भी अक्सर अमरीका होता है।
इसके लिए अमरीका ने यूएसएआईडी की स्थापना १९६१ में थी,इसका मकसद अमरीकी सहायता को हथिय़ार की तरह इस्तेमाल करते हुए विश्व में कम्यूनिष्टों को रोकना था। यानी विश्व में लोकतंत्र का मजबूत करना था और वामपंथ को कमजोर बनाए रखना था। इसके लिए अमरीका दूसरे देशों में दखल देेने का अपना अधिकार समझता था।बताया जाता है आज तक अमरीका ने २९ देशों में दखल दिया है,धावा बोला है, बमबारी की है।९-११ के बाद तो अमरीका ने आंतकवाद के खिलाफ वैश्विक युध्द शुरू कर दिया था।माना जाता है कि इसमे अब तक ४५ लाख से अधिक लोग मारे गए हैं।
बाइडेन तक अमरीका की राजनीति हो या विश्व की राजनीति हो, वह परंपरागत रूप से चली आ रही थी यानी राष्ट्रपति कोई भी बने अमरीका राजनीति व विश्व नीति बदलती नहीं थी। ट्रंप ने अपने दूसरे दौर में अमरीका की परंपरागत राजनीति को बदल दिया है। जो अब तक नहीं हुआ था वह ट्रंप ने किया है। उसने अमरीका को विश्व के शांति रक्षक रूप को बदलने की कोशिश की है और पूरा ध्यान इस बात पर लगा दिया है कि अमरीका को जो पैसा अमरीका से बाहर कई देशों में खर्च हो रहा है, उस पर रोक लगा दी जाए और व्यापार में अमरीका पलड़ा हर हालत भारी ऱखने की कोशिश की है।दूसरे विश्व युध्द के बाद अमरीका देश के बाहर बहुत सा पैसा इसलिए खर्च करना पड़ता था ताकि रूस के हमले से दूसरे देशों को बचाया जा सके। इसके लिए अमरीका ने कई देशों सैन्य अड्डे बनाए।अपनी सेना वहां ऱखी। यानी विश्व शांति व दूसरे देशों की सुरक्षा के लिए अमरीका बहुत पैसा खर्च कर रहा था।
सोवियत संघ के टूट जाने के बाद रूस पहले जैसा शक्तिशाली नहीं रहा लेकिन वह माना जाता रहा। वाइडेन तक रूस को शक्तिशाली माना जाता रहा। वाइडेन के समय रूस को कमजोर करने के लिए उसे यूक्रेन के साथ युध्द में उलझा दिया गया। तीन साल के युध्द के बाद भी रूस यूक्रेन को हरा नहीं सका तो पहली बार माना गया कि रूस अब पहले वाला रूस नहीं रह गया है। वाइडेन को बहुत पैसा खर्च करके रूस को आर्थिक रूप से कमजोर नहीं कर सके तो इसकी वजह यह रही की भारत व चीन ने रूस से तेल गैस आदि खरीदकर उनको आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखा।
ट्रंप ने इस बात को महसूस किया कि रूस अब पहले वाला रूस नहीं है तो रूस के कारण यूरोपियन यूनियन के देशों की रक्षा के लिए जो पैसा अमराकी खर्च करता रहा है, उसे अब करने की जरूरत नहीं है।अब तो वक्त है कि अमरीका खुद काे आर्थिक रूप से इतना मजबूत करे कि कोई उसकी नंबर वन की पोजीशन के लिए खतरा न बन सके। वर्तमान में रूस तो नंबर तीन की अर्थव्यवस्था है,इसलिए ट्रंप रूस को तो अमरीका के लिए खतरा नहीं मानते हैं।
दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था चीन है, इसलिए आर्थिक रूप से अमरीका चीन को अपने लिए खतरा मानता है। चीन व रूस के बीच बढ़ रही नजदीकी उसके लिए ठीक नहीं थी, इसलिए ट्रंप ने अमरीका व रूस के बीच की दूरी को कम करने के लिए यूक्रेन युध्द रुकवाने की पहल कर रहे हैं। रुस तो राजी हो गया है कि यूक्रेन युध्द वह रोक सकता है यदि उसकी शर्त मानी जाए। यूक्रेन न जरूर अमरीका आकर तेवर दिखाए लेकिन कुछ दिन बाद ही उसने अमरीका का सामने सरेंडर कर दिया है,यूरीपीय यूनियन के देशों ने भी कुछ दिन अमरीकी विरोध के तेवर दिखाए और वह भी समझ गए कि अमरीका को नाराज करने से उनका ही नुकसान होगा।
वर्तमान में यूरोपियन यूनियन के देश अमरीका पर जितना भरोसा करते थे, वह भरोसा कमजोर हो रहा है,इसी तरह चीन रूस पर जितना भरोसा कर रहा था, अमरीका से रूस की नजदीकी बढ़ने से अब रूस भी चीन के लिए पहले की तरह भराेसे का मित्र नहीं रहा।इसलिए चीन अब चाहता है कि भारत व चीन के संबंध मजबूत रहने चाहिए, वह कह रहा है कि भारत व चीन के संबंध मजबूत रहेंगे तो विश्व में शक्ति संतुलन जो बिगड़ गया है वह बना रहेगा।चीन के विदेश मंत्री यांग यी ने हाल ही में एक बयान जारी कर कहा है कि ड्रेगन व हाथी के बीच बेहतर तालमेल ही भारत व चीन के लिए बेहतर विकल्प है। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं,वर्तमान में भारत व चीन को एक दूसरे के हितों की रक्षा के लिए एक होना पड़ेगा,विश्व में लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह बेहद जरूरी है।भारत ने इसका कोई जवाब नहीं दिया है। भारत का तो हमेशा से ही मानना है कि जब तक चीन के साथ सीमा विवाद हल नहीं होते,आपसी संबंध सामान्य नहीं होंगे।
चीन के विदेश मंत्री के बयान के बाद भी भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमरीका से व्यापािरक समझौतो से दोनों देशों के संबंध मजबूत होंगे। यानी भारत ट्रंप के कड़े रूख के बाद भी अमरीका से संबंध बनाए रखना चाहता है तो इसमें भारत का हित है। क्योंकि विश्व राजनीति में अपना महत्व बनाए रखने के लिए पीएम मोदी की विदेश नीति सभी देशों से समान दूरी की जगह समान नजदीकी ज्यादा व्यावहारिक व ज्यादा जरूरी है।
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