सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो अगर उसकाे आर्थिक नुकसान उठाकर राजनीतिक फायदा होता है तो वह राजनीतिक फायदे के लिए आर्थिक नुकसान उठाना पसंद करती है। कोई सरकार यह करती नहीं है कि आर्थिक नुकसान हो रहा है तो वह राजनीतिक फायदा न उठाए।हाेता यह है कि राजनीतिक दल सत्ता में है तो वह राजनीतिक फायदे को ज्यादा महत्व देता है। वही राजनीतिक दल जब सत्ता में नहीं होता है और विपक्ष में होता है तो उसके लिए राजनीतिक फायदे से आर्थिक नुकसान ज्यादा बड़ा मुद्दा हो जाता है।आज छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता में है। जो सत्ता में होता है, उसकी राजनीतिक मजबूरी भी होती है।उसे निरंतर साबित करना पड़ता है कि हम पिछली सरकार से ज्यादा अच्छा काम कर रहे हैं। हर साल सरकार को ज्यादा किसानों से ज्यादा पैसे मेें प्रति एकड़ ज्यादा धान खरीदना राजनीतिक मजबूरी है, जिस राजनीतिक दल की सरकार होगी उसे ऐसा करना पड़ेगा। जो ऐसा नहीं करेगा तो अगला चुनाव वह जीत नहीं सकता।
रमन सरकार के समय से ज्यादा किसानों का ज्यादा धान ज्यादा कीमत पर खरीदा जा रहा है। रमन सिंह सरकार से धान का ज्यादा पैसा देने, ज्यादा धान खरीदने का वादा चुनाव में करने पर कांग्रेस सरकार बनी।भूपेश सरकार ने पांच साल ज्यादा पैसा देकर ज्यादा किसानों का ज्यादा धान खरीदा। रमन सिंह के समय धान का पैसा २१०० रुपए मिल रहा था तो भूपेश बघेल ने चुनाव में किसानों से वादा किया वह किसानों को धान का २५००रुपए देगी।फिर चुनाव का समय आया तो भूपेश सरकार को फिर धान की कीमत भी ज्यादा देेने का वादा करना पड़ा और ज्यादा धान खरीदने का वादा भी करना पड़ा। इस बार भाजपा ने कांग्रेस से २८०० रुपए प्रति क्विंटल के जवाब में ३१०० रुपए प्रति क्विंटल, प्रति एकड़ २१ क्विंटल धान खरीदने का वादा किया और इसी आधार पर चुनाव जीत लिया। दो राजनीतिक दलों के बीच ज्यादा पैसे में ज्यादा धान और ज्यादा किसानों से धान खरीदने की होड़ के कारण किसानों को तो हर साल ज्यादा पैसा मिल रहा है, किसानों का ज्यादा धान खरीदा जा रहा है।हर साल ज्यादा किसानों से धान खरीदा जा रहा है।इस होड़ में सत्तारूढ दल की सरकार चाहे भी तो अब वह न तो किसानों की संख्या कम कर सकती है, न ही प्रति क्विंटल कम पैसा दे सकती है, न ही प्रति एकड़ कम धान खरीद सकती है, वह जितने किसानों से धान खरीदी रही है, जितने पैसे में खरीद रही है और जितना धान खरीद रही है।उतना ही वह अगले साल खरीदेगी तो उसकी आलोचना विपक्ष शुरू कर देगा कि यह सरकार किसान हितैषी नहीं है क्योंकि यह तो न ज्यादा धान खरीद रहा है, न ही ज्यादा किसानों से खरीद रहा है और न ही धान का ज्यादा पैसा दे रहा है।
सरकार अगर पांच साल ऐसा करती है तो उसका अगला चुनाव जीतना संभव नहीं है। इसलिए सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की हो,उसको तो हर साल ज्यादा धान खरीदना है, प्रति एकड़ ज्यादा खरीदना है और ज्यादा पैसा भी किसानों को देना ही है। अभी सत्ता में भाजपा की सरकार है, उसने उसने २५ लाख किसानों से १४९ लाख मीट्रिक टन धान खरीदा है, उसका लक्ष्य तो १६०लाख मी.टन खरीदना था। यानी लक्ष्य से कम किसानों से कम धान खरीदा है सरकार ने फिर भी उसके पास अतिशेष धान ४० लाख मी.टन बच रहा है।अतिशेष धान का मतलब है कि सरकार जितना धान खपा सकती है, उससे ज्यादा धान सरकार ने खरीदा है तो उसे महंगे दाम में खरीदा गया धान कहीं खपत नहीं होने के कारण अब नीलाम करना होगा यानी महंगे में खरीदा गया धान सस्ते में बेचना होगा।आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने धान किसानों से ३१०० रुपए प्रति क्विंटल खरीदा है।५०० रुपए संग्रहण व्यय व ब्याज आदि मिलाकर धान की लागत हो जाती है प्रति क्विंटल ३६०० रुपए। सरकार को एक क्विंटल धान ३६०० रुपए का पड़ता है।माना जा रहा है कि अतिशेष ४० लाख मी.टन धान की नीलामी सरकार करती है तो उसे ८ हजार करोड़ का नुकसान होगा।
कांग्रेस का कहना है कि यह बड़ी रकम है,यह राज्य के बजट का पांच प्रतिशत होता है।ऐसा किया गया तो राज्य को बड़ा नुकसान होगा।ऐसा नहीं करना चाहिए और केंद्र सरकार से राज्य सरकार को अनुरोध करना चाहिए कि वह राज्य का अतिशेष धान भी खरीदे क्योंकि केंद्र व राज्य में एक ही पार्टी की सरकार है, इसलिए ऐसा होना संभव है। कांग्रेस ने यह तर्क भी दिया है कि केंद्र की मोदी सरकार पंजाब से १७९ मी.लाख टन धान से होने वाला पूरा चावल ले रही है तो वह छत्तीसगढ़ में जितना धान खरीदा गया है, उसका पूरा चावल क्यों नहीं ले रही है। कांग्रेस का मकसद धान खपत के मामले को उठाकर दोनों सरकार को फेल बताना है। वह यह तो बता रही है कि पंजाब से केंद्र सरकार ज्यादा धान होने के बाद भी पूरा चावल ले रही है लेकिन यह नहीं बता रही है कि छत्तीसगढ़ से केंद्र सरकार ज्यादा चावल क्यों नहीं ले रही है। इसकी वजह यह हो सकती है कि पंजाब का चावल छत्तीसगढ़ के चावल से बेहतर किस्म का हो।
यह भी सच है कि केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ सरकार से पिछली बार जितना चावल ली थी,उतना चावल भी नहीं ले रही है तो इसकी वजह यह है कि सरकार समय पर चावल ही नहीं दे पाती है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २२-२३ में १०७ लाख मी.टन धान का उठाव किया गया था,इसमें ५८.११ लाख मी.चावल सेंट्रल पूल मे जमा हुआ था।वर्ष २३-२४ में १४४.१६लाख मी.टन धान उठाया गया।जिसमें से केंद्र सरकार ने ८२.४२ लाख मी.टन चावल जमा करने की अऩुमति दी।इसमें से ७७.०६लाख मी.टन चावल सेंट्रल पूल में जमा किया जा चुका है। जबकि ५.२९ लाख मी.टन चावल अभी और जमा किया जाना है। वर्ष २४-२५ के लिए केंद्र सरकार ने ६९.७२ लाख मी. टन चावल जमा करने की अनुमति दी है।इसके लिए १०८ लाख मी. टन धान लगेगा यानी सरकार के पास खरीदे गए धान में ४० लाख मी.टन बच जाएगा। साय सरकार ने इसी धान को खुले बाजार मे नीलाम कर बेचने का फैसला किया है, विपक्ष का आरोप है कि इससे राज्य को आठ हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
आज कांग्रेस को राज्य के नुकसान की बड़ी चिंता हो रही है, वह भूल गई है कि इसी तरह केंद्र सरकार ने उससे भी ज्यादा चावल लेने से मना कर दिया था तो उसे भी २५०० प्लस संग्रहण व ब्याज आदि मिलाकर ३१०० में खरीदा गया धान १२००-१३०० रुपए प्रति क्विंटल बेचना प़ड़ा था और उसे भी धान खरीदी में बड़ा घाटा हुआ था।तब कांग्रेस के भूपेश बघेल सहित किसी नेता ने राज्य को होने वाले नुकसान की चिंता नहीं की थी।तब उनको अपने राजनीतिक फायदे की ज्यादा चिंता थी। कांग्रेस यह भी भूल गई है कि जितना धान खरीदने की जरूरत है।उससे ज्यादा धान खरीदने, ज्यादा किसानों से खरीदने व ज्यादा पैसे में खरीदने की शुरुआत भी तो उसी ने की है। राजनीतिक फायदे के लिए मजबूरी में भाजपा को भी वही करना पड़ा है। कांग्रेस ने जो सिलसिला शुरु किया है, उसे कोई बंद नहीं कर सकता। कोई भी सरकार हो वह जरूरत से ज्यादा धान राजनीतिक फायदे के लिए खरीदेगी तो उसे हजारों करोड़ का आर्थिक नुकसान तो होगा ही।
इसके साथ ही सरकार को राज्य के गरीबों को सस्ता चावल देने के लिए भी पहले से ज्यादा घाटा उठाना होगा।राशन का चावल सस्ते में देने के कारण राज्य में अलग व्यापक तौर पर भ्रष्टाचार होता है।राइस मिलर्स सस्ता राशन का चावल खरीदकर उसे फिर सरकार को बेच देते है। राशन दुकानदार सस्ता राशन का चावल लोगों को न बांटकर खुले बाजार में अलग से बेच देते हैं।कांग्रेस सरकार के समय चावल का घाेटाला चर्चा का विषय रहा है।माना जाता है कि गरीबों के चावल का घोटाला करने के कारण भी पिछली सरकार को गरीबों की हाय लग गई। सचमुच गरीबों की हाय बहुत असरकारी होती है,देर से लगती है और आदमी का बुरा हाल हो जाता है, कांग्रेस और उसके कई नेताओं का बुरा हाल है तो इसी वजह से,कांग्रेस के कई नेता आज गरीब की हाय लगने से जेल में है और कुछ जल्द ही जाने वाले हैं।
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