बाघ जंगल की शान ही नहीं हमारा अस्तित्व भी हैं

Posted On:- 2024-07-27




29 जुलाई विश्व बाघ दिवस

- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा

भारतवर्ष के राष्ट्रीय पशु बाघ की सुंदरता जंगलों को भी अपने आप में गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान कर रही है । दुनिया भर में आसानी से अपनी पहचान के लिए प्रसिद्ध बाघों से ही हमारा पशु प्रेम उजागर होता रहा है । भारतवर्ष से लेकर विश्व के इतिहास में बाघों को सांस्कृतिक परंपरा के रूप में देखा जा रहा है । यही ऐसा पशु रहा है जो ब्रांड इमेज के साथ दुनिया भर में अपना अस्तित्व प्रकट करता रहा है । बड़ी विडंबना की बात है कि बाघ हमारे सांस्कृतिक परिदृश्य में सर्वव्यापी होने के बावजूद आज जंगलों में उनका वास्तविक अस्तित्व नाटकीय रूप से ऐतिहासिक दायरे के कुछ ही हिस्सों में सिमट कर रह गया है । वर्तमान में विश्व भर के महज 10 देश ही ऐसे रह गए है जहां बाघों के दर्शन हो सकते हैं ! इतिहास से जानकारी मिलती है कि बाघों की संख्या में 90 से 95% प्रतिशत की कमी आ चुकी है ! यह कहने में कोई संकोच नहीं कि यदि बाघ हमारी पृथ्वी से पूरी तरह से लुप्त हो गए तो हम एक प्रतिष्ठित पशु प्रजाति को खोने के अलावा बहुत कुछ से वंचित हो जाएंगे ! मानव जाति के लिए बाघ कितने महत्वपूर्ण हैं इसे जानना हो तो यह तथ्य सर्वजन के लिए जरूरी है । बाघों के आवास एशिया के बड़े सबसे महत्वपूर्ण जल स्रोतों से जुड़े हैं , जो 800 मिलियन से ज्यादा लोगों को पेयजल से लेकर निस्तारी जल की आपूर्ति करते हैं !

बाघ वनों , की सुरक्षा से मानवीय जीवन में सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है ! बाढ़ को रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने का सबसे किफायती तरीका भी बाघ संरक्षण में छिपा हुआ है ! यह बात सिद्ध हो चुकी है कि बाघ संरक्षित क्षेत्र , वनों की कटाई में भरपूर कमी ला रहे हैं । यह बताने की जरूरत नहीं कि विलुप्त जीवों " डोडो और डायनासोर " के उदाहरण से अंतर्राष्ट्रीय चिंता सामने आती रही है । बाघ एक वैश्विक पशु है , लेकिन जब तक हम उन्हें संरक्षित नहीं करेंगे तब तक उन्हें केवल चिड़िया घरों में ही देखा जा सकेगा । यह सच्चाई भी विश्व जानता है कि बाघों के बिना दुनिया आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से गरीब हो जायेगी । यही कारण है कि प्रतिवर्ष 29 जुलाई को बाघों की लुप्त होती प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने तथा उनकी रक्षा एवं पारिस्थितिकीय महत्व को उजागर करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है । इस दिवस की शुरुआत 2010 में सर पिटर्सबर्ग ने टाइगर विश्व सम्मेलन में की थी । यह चिंता का विषय है कि भारतवर्ष में बाघों की संख्या लगातार कम  हो रही है । कभी लोगों के बीच अपनी दहाड़ से कंपन पैदा करने वाले बाघ आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं ! बढ़ते शहरीकरण और सिकुड़ते जंगलों ने जहां बाघों से उनका आशियाना छीना है वहीं मानव समाज ने भी बाघों के साथ क्रूरता बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । बाघों के संदर्भ में हमारी अनदेखी का नकारात्मक परिणाम आज हमारे समक्ष है । 

जंगल में बाघों की कम हो रही संख्या पर चिंतन करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूर्ण होने पर  " टाइगर स्टेटस 2022 " जारी किया था । उस वक्त के जारी किए गए आंकड़ों में बताया गया था कि हमारे देश में 3,167 बाघ हैं । बाघों की गणना प्रति चार वर्षों में की जाति है । आंकड़े यह भी बताते हैं कि  पिछले चार वर्षो में बाघों की संख्या में वृद्धि के साथ मध्य प्रदेश , देश में बाघों की अधिकतम संख्या 785 के साथ प्रथम स्थान पर है । इसके बाद क्रमशः कर्नाटक 563 , उत्तराखंड 560 तथा महाराष्ट्र 444 के साथ दूसरे , तीसरे एवं चौथे स्थान पर हैं । हम यह कह सकते हैं कि बाघ संरक्षण में भारतवर्ष के अनुकरणीय प्रयास और बाघों की संख्या में वृद्धि केवल आंकड़ों के तौर पर न देखी जाए । यह राष्ट्र के बाघ संरक्षण के दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धतता का प्रमाण भी मानी जानी चाहिए । बाघ संरक्षण के मामले में हमारे देश ने न केवल अपनी बाघ आबादी को सफलता पूर्वक संरक्षित रखने में कामयाबी पाई है बल्कि धरती पर निवासरत सभी जीवन रूपों का भविष्य भी सुरक्षित किया है । यह वास्तव में " वसुधैव कुटुंबकम् " के हमारे दर्शन को सार्थक करता दिख रहा है । सन 1973 में शुरू किए गए प्रोजेक्ट टाइगर के 51 वें वर्ष में हमने प्रवेश कर लिया है । यह संकल्प स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है कि हमने बाघों को बचाने के प्रयास में खुद को सतत रूप से जोड़े रखा है । हम यदि आंकड़ों को देखें तो 2018 में 2,461 बाघों की संख्या 2022 में 3,080 तक पहुंच गई । 9 अप्रैल 2022 को मैसूर में प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वें साल में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्रा मोदी ने न्यूनतम बाघ आबादी 3,167 की घोषणा की थी ।

हमारे देश के प्रोजेक्ट टाइगर ने पिछले पांच दशकों में बाघ संरक्षण में जबर्दस्त प्रगति की है , किंतु अवैध शिकार जैसी चुनौतियां अभी भी बाघ संरक्षण के लिए खतरा बनी हुई हैं । बाघों के आवासों और उनके पारिस्थितिकी तंत्रों के भविष्य को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित करना भी हमारा लक्ष्य होना चाहिए । हमारी अगली पीढ़ी को यह ज्ञात होना चाहिए कि बाघों की कुल आठ प्रजातियां हैं :- रॉयल बंगाल , इंडो - चाइनीज , सुमात्रा , अमूर या साइबेरियन , साउथ - चाइना , कैस्पियन , जावा और बाली । हमारे लिए यह बड़ा दुखद है कि हमारे मानवीय समाज के अमानवीय लोगों ने कैस्पियन , जावा तथा बाली प्रजाति के बाघों का बड़ी संख्या में शिकार कर उन्हें विलुप्त कर दिया है । यही कारण है कि आई यू सी एन ( द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ) रेड लिस्ट के अनुसार बाघ को लुप्त प्राय पशु के रूप में सूची बद्ध किया गया है । अवैध शिकार , बाघ की खाल और शरीर के अन्य अंगों की तस्करी करने वालों के कारण समय - समय पर बाघों की संख्या को लेकर हमारी चिंता बढ़ जाती है । बाघों के साम्राज्य में डिजिटल कैमरे की घुसपैठ और पर्यटन की खुली छूट के कारण तस्कर आसानी से बाघों तक पहुंच रहे हैं ।

भारतवर्ष सहित विश्व के अनेक देशों में वन क्षेत्रों में सुधार न आने से बाघों की वंश वृद्धि नहीं हो पा रही है । दूसरी ओर बाघों को खतरनाक बीमारियों से भी नहीं बचाया जा पा रहा है । वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि अभ्यारण्यों के आस - पास रहने वाले कुत्ते संक्रामक बीमारी फैलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं , जो बाघों के लिए ठीक नही है । इसके अलावा करेंट , आपसी संघर्ष , रेल रोड ऐक्सिडेंट और जहर देकर बाघों को मारना भी बड़ी समस्या बनी हुई है ! वर्तमान में देखा जाए तो बाघ संरक्षण भारतवर्ष ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में विद्यमान है ।

- राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ ) 



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