लगातार तीसरी जीत यूं नहीं मिल जाती है

Posted On:- 2024-10-08




सुनील दास

राजनीति में कई बार विरोधी दल व राजनीतिक विश्लेषक जो सोचते हैं वही नहीं होता है, उसके एकदम विपरीत हो जाता है तो उनको समझ में नहीं आता है कि ऐसे कैसे हो गया। ऐसा तो होना ही नहीं चाहिए। हम तो हार ही नहीं सकते थे तीसरी बार और वह राजनीतिक दल तो तीसरी बार जीत ही नहीं सकता है उससे तो जनता बहुत नाराज थी।बहुत से लोगों के लिए यही वजह है कि हरियाणा मे भाजपा की तीसरी जीत किसी चमत्कार से कम नहीं लगती है।राजनीति में चमत्कार वही कर सकता है जिसे मालूम रहता है कि हम क्यों हार सकते हैं, और हम कैसे जीत सकते हैं।राजनीति में वह दल चमत्कार नहीं कर सकता है जो इस बात की प्रतीक्षा करता रहता है कि जनता जब उस दल से नाराज होगी तो हमें ही चुनेगी।

कांग्रेस हरियाणा में मानकर चल रही थी कि वहां तो जनता भाजपा सरकार से नाराज है,इसलिए यहां तो जनता अब कांग्रेस को चुनेगी। मतदान समाप्त होने पर आए एग्जिट पोल में भी तो वही बताया जा रहा था जो कांग्रेस मानकर चल रही थी।लेकिन एग्जिट पोल तो अऩुमान होता है और कई बार अऩुमान गलत भी हो जाता है तो इस बार सारे चैनलों का अनुमान गलत हो गया और हरियाणा में मतगणऩा के दौरान आए रुझानों से साफ होता चला गया कि यहां तो भाजपा की बहुमत वाली सरकार बन रही है।यहां तो भाजपा को पिछली बार से ज्यादा सीटें मिल रही हैं।

ज्यादातर ऐसा होता नहीं है क्योंकि जो पार्टी सत्ता में रहती है,उसकी लोकप्रियता दस साल बाद कम हो जाती है, मान लिया जाता है कि इसकी सीटें कम होंगी और इसकी सरकार भी नही बनने वाली है।देश में पीएम मोदी के बाद कई राज्यों मेें ऐसा नहीं हुआ है। इसलिए कहा जाता है कि पीेेएम मोदी के समय कोई भी भाजपा सरकार हो राज्य में उसके पक्ष में प्रो इन्कमबेशी होती है। इसी वजह से राज्यों में भाजपा की सरकार दूसरी और तीसरी बार चुनी जाती हैं। प्रो इन्कमबेशी तब ही होती है जब सकार दस साल अच्छा काम करती है, जनहित में बड़े फैसले करती है।

यही वजह है कि भाजपा को हारते हुए देखने वाले सोच ही नहीं सके कि हरियाणा में भाजपा ने जो कुछ अच्छे फैसले किए है, उसके कारण वह चुनाव जीत भी सकती है।भाजपा  ने कई राज्यों सीएम बदलकर और जनहित में अच्छे फैसले कर चुनाव दूसरी व तीसरी बार जीत चुकी है. यानी उसे चुनाव जीतना दूसरे दलों से ज्यादा अच्छी तरह आता है। इस कारण भी वह चुनाव ज्यादा जीतती है। वह उन्हीं राज्यों में चुनाव नही जीत पाती है जहां उसके पास क्षेत्रीय दलों के नेताओं को टक्कर देने वाले नेता नहीं है।जम्मू कश्मीर में भी यही हुआ है कि वहां भाजपा जम्मू में ही अच्छा कर सकती कि उसने वहां अच्छा किया है लेकिन घाटी में उसके पास ऐसे नेता नहीं थे इसलिए वह वहां चुनाव भी नहीं लडा और सीटें जीती भी नहींं। फिर भी भाजपा को यह संतोष हो सकता है उसने जम्मू कश्मीर में पहले से अच्छा प्रदर्शन किया है।

चुनाव में हार जीत का देश में आने वाले समय में होने वाले चुनाव पर भी असर पड़ता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले से ज्यादा यानी ९९ सीटें जीत ली थीं तो उसके तेवर ही बदल गए थे,वह चाहने लगी थी कि अब विपक्ष के दलों के नेताओं को अब कांग्रेस जो कहती है, वह मान लेना चाहिए। यानी विपक्ष की राजनीति में लोकसभा चुनाव में ९९ सीटें जीतने पर कांग्रेस की बारगेनिंग पावर बढ़ गई थी। वह दूसरे दलों से ज्यादा सीटें मांगने लगी थी। वह ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करने लगी थी।

अब जब वह हरियाणा में चुनाव हार गई है तो स्वाभाविक है कि अब वह महाराष्ट्र,झारखंड में होने वाले चुनाव में मजबूती से दावा नहीं कर पाएगी। राहुल गांधी जिन्हे चुनाव जिताने वाला नेता माना जा रहा था, फिर से यह माना जाने लगेगा कि राहुल गांधी में पार्टी को चुनाव जिताने की क्षमता नहीं है। वह ऐसे नेता नहीं है हर चुनाव में पार्टी को जीत दिला दें। हरियाणा में भाजपा की जीत से पीएम मोदी का कद जहां और ऊंचा हो जाएगा,वहीं राहुल गांधी के चुनाव जिताने की क्षमता पर पर सवालिया निशान लग जाएगा।हरियाणा की जनता ने जो फैसला दिया है,उससे साफ हो गया है कि वह राहुल गांधी व केजरीवाल से ज्यादा भरोसा मोदी पर करती है। जनता राहुल गांधी व केजरीवाल से बेहतर नेता मोदी को मानती है।जनता तीसरी बार उसी को जिताती है जिसे वह सबसे बेहतर नेता,सबसे बेहतर पार्टी मानती है।



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