समिति हमेशा बना दी जाती है उसके बाद......

Posted On:- 2024-10-11




सुनील दास

हर चुनाव में कांग्रेस हो या कोई और राजनीतिक दल जब हार जाता है तो वह क्यों हारे यह जानने का प्रयास करता है। क्योंकि जब तक चुनाव का रिजल्ट नहीं आता है किसी राजनीतिक दल को यह लगता ही नहीं है कि उन्होंने कोई गलती है। वह तो मानकर चलते हैं हमने सब सही किया है, इसलिए जीत तो हमारी हो होगी।हार जाते हैं तो पहले तो चुनाव परिणाम को अप्रत्याशित बताकर उसे अस्वीकार करने का नाटक किया जाता है। देश को बताने की कोशिश की जाती है, यह कांग्रेस व राहुल गाधी की हार नहीं है। इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं है।

पहले इसके लिए चुनाव आयोग को दोषी ठहराने का प्रयास किया जाता है।सबको मालूम है कि हार के लिए चुनाव आयोग को दोषी साबित नहीं किया जा सकता। लेकिन चुनाव आयोग को शक के घेरे में इसलिए ऱखा जाता है कि हार की ठीकरा नेतृत्व के सर न फूटे। कांग्रेस में अध्यक्ष भले ही एम.खरगे हों लेकिन असली नेता तो राहुल गांधी ही है,हर चुनाव में जो भी फैसला किया जाता है,वह राहुल गांधी और गांधी परिवार की मर्जी से ही किया जाता है।

सबको पता है कि हुड्डा को ९० में से ७० से ज्यादा सीटें देने का परिणाम क्या होना है।इसके बाद भी दूसरे गुटों को नाराज कर हुड्डा खेमे को ज्यादा सीटें दी गईं ताकि जीतने पर सीएम भी वही बनें, सरकार भी उनकी मर्जी से बने।सबको पता है कांग्रेस में ज्यादा टिकटें हुड्डा गुट को दी गई इसलिए दूसरे गुटों ने चुनाव प्रचार गंभीरता से नहीं किया,क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि हुड्डा गुट जीते और वह उनको और कमजोर करे।सबको पता है कि गुटबाजी का परिणाम यह होता है कि एक गुट सत्ता में आना चाहता है तो दूसरा गुट उसे आने नहीं देना चाहता है और इसका परिणाम यह होता है कि पार्टी सत्ता में नहीं आ पाती है। 

सबको पता है कि जब पार्टी के लोगों को टिकट नहीं दी जाती है तो वह बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ते है और खुद भले न जीत न पाए लेकिन पार्टी प्रत्याशी को भी जीतने नहीं देते हैं। कांग्रेस के बागियों ने भी कांग्रेस को हराने में बड़ी भूमिका निबाही है। यह भी सबको पता था कि बागी नुकसान पहुंचाएंगे लेकिन नुकसान से बचने के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं किए गए। इसका परिणाम तो यही होना था कि कांग्रेस की सरकार न बने। यही हुआ है कांग्रेस की सरकार हरियाणा में दस साल बाद भी नहीं बन सकी है।

कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं को सब पता है कि कांग्रेस हरियाणा में जीतने का मौका होने के बाद क्यों हारी हैं फिर भी कांग्रेस की बैठक बुलाई जाती है और हरियाणा की हार को गंभीरता से लेते हुए एक समिति गठित करने का फैसला किया जाता है कि यह समिति हार के कारणों का जमीन पर पता लगाएगी और रिपोर्ट देगी। ऐसी समिति तो कांग्रेस हर चुनाव में हार के बाद बनाती है, समिति रिपोर्ट भी देती है लेकिन पता नहीं चलता है कि समिति ने क्या रिपोर्ट दी है और पार्टी ने उस पर क्या फैसला किया है। 

बैठक में राहुल गांधी ने इस बात नाराजगी जाहिर की चुनाव के दौरान पार्टी के नेताओं ने अपने हित काे सर्वोपरि और पार्टी के हित तो दूसरे स्थान पर रखा।राहुल गांधी पार्टी के नेता होने के कारण हार की जिम्मेदारी ले सकते थे लेकिन राहुल गांधी कभी हार के लिए खुद को दोषी नहीं मानते और पार्टी भी उनको कभी दोषी नहीं मानती है।क्योंकि इससे साबित होता है कि राहुल गांधी चुनाव जिताने में सक्षम नहीं है। वह गलती करते हैं और पार्टी चुनाव हार जाती है।

कांग्रेस लोकसभा चुनाव भी तो हार गई थी लेकिन क्या हुआ कांग्रेस को कुछ सीटें ज्यादा मिल गईं तो राहुल गांधी को तीसरी बार पार्टी के हारने के बाद हार के लिए कहां दोषी माना गया।देश में प्रचार किया गया कि राहुल गांधी ने मोदी को हरा दिया। कैसे हरा दिया नैतिक रूप से हरा दिया।लोकसभा चुनाव में हार के बाद कोई समिति हार के कारणों को जानने के लिए गठित नहीं की गई क्योंकि कांग्रेस ने माना कि उसे ९९ सीटें मिल गई हैं तो वह जीत गई है और मोदी व भाजपा हार गए हैं। अब तो कांग्रेस उनको हर चुनाव में इसी तरह हरा देगी।

भाजपा व मोदी ने तो अपनी गलती सुधार ली और हरियाणा में चुनाव जीतकर कांग्रेस को फिर से वही कांग्रेस बना दिया है जो चुनाव हारना जानती है। चुनाव के बाद चुनाव हारती रहती है।अब समिति गठित करने से और राहुल गांधी के पीछे पार्टी के नेताओं को एकजुट होकर खड़े होने से पार्टी चुुनाव जीतने से रही।गांधी परिवार को भी इस बात का एहसास करना होगा कि हर चुनाव में हार के लिए वह कितने दोषी हैं। उनसे क्या गलती हुई कि पार्टी लोकसभा चुनाव हार गई, उसके बाद हरियाणा चुनाव भी हार गई।



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