नक्सलियों का मारना हमारा उद्देश्य नहीं है....

Posted On:- 2024-12-16




सुनील दास

देश के गृहमंत्री अमित शाह कुछ भी कहते हैं तो वह यूं ही नहीं कहते है, उसके पीछे दूरदर्शिता होती है, उसका कोई मकसद होता है।वह जानते हैं विपक्ष सरकार नक्सलियों के सफाए की बड़ी सफलता पर भी सवाल उठा सकता है, सवाल उठाएगा ही।शाह जानते हैं जब सरकार को यह बड़ी सफलता मिलेगी तो उस पर सवालिया निशान विपक्ष किस तरह लगा सकता है। इसलिए अमित शाह अभी से ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं कि विपक्ष उस वक्त जब सरकार को नक्सलियों के सफाए की बड़ी सफलता मिले तो कोई बड़ा सवालिया निशान न लगा सके।

शाह जानते हैं कि ऐसा तब ही हो सकता है जब नक्सलियों के सफाए के दौरान ज्यादा स्थानीय लोगों की मौत न हो, ज्यादा निर्दोष लोगों की मौत न हो।यही वजह है कि अमित शाह जब सरेंडर कर चुके नक्सलियों से मिले तो नक्सलियों से हिंसा का रास्ता छोड़कर सरेंडर करने की अपील की।सरेंडर करने वाले नक्सलियों से पहली मुलाकात में अमित शाह ने कहा कि नक्सलियों को मारना सरकार का मकसद नहीं है।लेकिन बस्तर के विकास के लिए जरूरी है कि नक्सली हिंसा पर लगाम लगाई जाए।शाह का पूरा जोर इस बार के दौरे में यह बताने पर था कि सरकार नक्सलियों का मारना नहीं चाहती है, वह तो चाहती हैं कि नक्सली सरेंडर कर दें ताकि सरकार को उनको मारने के लिए अभियान न चलाना पड़े, उनको गिरफ्तार करने के लिए अभियान न चलाना पड़े।

यह सरकार का नरम रुख है, इसके जरिये वह बस्तर के नक्सलियों का साथ दे रहे लोगों को यह बता रहे हैं कि आप लोगों के लिए अच्छा यह है कि सरेंडर कर दो और समाज की मुख्य धारा में शामिल हो जाओ और शांति से सभी लोगों के साथ रहो, आप लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, जहां पैसा देना जरूरी है, पैसा दे रही है,जहां घर व जमीन की जरूरत है, दे रही है।अमित शाह चाहते हैं कि बस्तर में जितने भी नक्सली है, सभी सरेंडर कर दें, इसलिए उन्होंने गेंद नक्सलियों के पाले में डाल दी है कि सरकार का काम यह बताना है कि आपका भला किसमें है।

इसके बाद सरकार वही करेगी जिसमें बस्तर का भला होगा। यानी नक्सलियों का सफाया, पहले नरमी से हो जाए तो अच्छा। नरमी से नक्सलियों का सफाया नहीं होगा सरकार के पास दूसरा रास्ता भी है सख्ती का। सरकार ने नक्सलियों के सुरक्षित ठिकानों में घुसकर नक्सलियों का सफाया कर साबित किया है कि वह सख्ती से भी नक्सलियों का सफाया कर सकती है, सुरक्षा बलों के कैंप नक्सली के सुरक्षित समझे जाने वाले इलाके में खुल जाने से नक्सली अब खुल कर अपनी गतिविधि नहीं चला पा रहे है, उनकी दशहत गांवों में कम हो रही है।सुरक्षा बलों के प्रति गांव के लोगों का विश्वास बढ़ा है,अब उनको लगता है कि सुरक्षा बल उनकी नक्सलियों से रक्षा कर सकता है।सुरक्षा बलों पर ग्रामीणों का भरोसा ब़ढ़ने से हुआ यह है कि अब नक्सलियों के हर मूवमेंट की जानकारी सुरक्षा बलों को मिल जाती है। इससे सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला कर उनका सफाया करने में मदद मिल रही है।

इसी वजह से नक्सली बेगुनाह लोगों की हत्या कर उनको डराना चाहते हैं कि यदि वह उनकी सूचना को देंगे तो उनको मार दिया जाएगा। इसका कोई खास असर ग्रामीणों पर नहीं पड़ रहा है और उनकी सूचना पर आए दिन सुरक्षा बलों के हाथों नक्सली मारे जा रहे है।आंकड़ों के मुताबिक अब तक २८७ नक्सली मारे जा चुके हैं, एक हजार नक्सली गिरफ्तार कर चुके है और ८३७ ने सरेंडर किया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि पुलिस ने अब तक जितने नक्सलियों का मारा है, उससे चार गुना नक्सलियों ने सरेंडर किया है, इसका मतलब यह है कि सरकार व गृहमंत्री की तरफ से जो कहा जा रहा है कि नक्सलियों का मारना हमारा मकसद नहीं है, हम तो चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा नक्सली सरेंडर करें और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो कर शांति से जीवन बिताएं, वह सच में ऐसा हो रहा है।

यह आंकडे़ बस्तर में नक्सलियों के सफाए के अभियान की सफलता का सुरक्षा कवच हैं क्योंकि इस आंकड़ों पर आधार पर सरकार विपक्ष को बता सकती है कि देखाें यह सफलता ज्यादा लोगों को मारकर नहीं मिली है ज्यादा लोगों को सरेंडर कराने से मिली है, ज्यादा लोगों को गिरफ्तार करने से मिली है।आंकड़ों में सरकार आज भी विपक्ष को बता सकती है कि नक्सलियों के सफाए अभियान की बड़ी सफलता यह है कि इसमें सरकार ने १८३७ लोगों को नहीं मारा है, मात्र २८७ लोगों को ही मारना पड़ा है क्योंकि उन्होंने सरेंडर करने को कहने के बाद सरेंडर नहीं किया।

नक्सलियाें का सफाया ३१ मार्च २०२६ तक करना है,यह लक्ष्य है, अमित शाह का जोर इस बात पर है कि इस दौरान सरेंडर व गिरफ्तार करने वालों के आंकड़े मारे जाने वाले नक्सलियों से ज्यादा रहें। अब तक तो सरकार ऐसा करने में सफल रही है।आगे भी सफल रहती है तो विपक्ष को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि  सरकार का नक्सली सफाए का अभियान स्थानीय लोगों के खून से रंगा हुआ है। बेगुनाह लोगों के लोगों के खून से रंगा हुआ नही है। 

विपक्ष तो सरकार की सफलता पर इसी आधार सवालिया निशान लगा सकता है कि कितने लोग इस दौरान मारे गए हैं। वह तो बेगुनाह लोगों की संख्या को ज्यादा बताने की कोशिश करेगा। इसलिए अमित शाह ने सफलता को बचाने के लिए कैसे सुरक्षा कवच बनाया जा सकता है, साय सरकार को बता दिया है, अब आगे साय सरकार की जिम्मेदारी है वह इस सुरक्षा कवच को मजबूत बनाए रखे।



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