नक्सलियों का खौफ कम तो हुआ है

Posted On:- 2024-12-18




सुनील दास

चाहे पिक्चर हो या समाज में कहीं पर किसी अपराधी, गुंडा का अत्याचार इतना बढ़ जाता है कि लोग उसे खुद पीट पीट कर मार देते हैं।ऐसी घटना तब ही होती है जब आदमी के भीतर उस अपराधी,गुंडा का डर खत्म हो जाता है।जब तक आदमी, समाज उससे डरता रहता है, उसके अत्याचार सहता रहता है, जिस दिन आदमी के भीतर डर खत्म हो जाता है तो वह उस अपराधी,गुंडा को ही खत्म कर देता है। हाल ही में ८ दिसंबर को झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड में प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स लिबरेशन फेडरेशन आफ इंडिया (पीएलएफआई) के एरिया कमांडर मोटा टाइगर और उसके एक साथी को स्थानीय ग्रामीणों ने पीट पीट कर मार डाला ।पुलिस ने भी इस घटना की सूचना मिलने की बात कही है।

बताया जाता है कि नक्सली आए दिन बेगुनाह लोगों की हत्या कर रहे हैं,इससे ग्रामीण नाराज हैं तथा हथियार लेकर वह भी नक्सलियों को ढूंढ रहे हैं मारने के लिए।ऐसी स्थिति झारखंड में आ गई है तो हो सकता है कि इसलिए आई हो कि वहां ग्रामीणों के नक्सलियों से बचाने के लिए सुरक्षा बल न हो। इसलिए ग्रामीणों ने खुद ही नक्सलियों से निपटने का फैसला कर लिया है और दो नक्सलियों को मार कर ऐलान कर दिया हो कि तुम हमको मारोगे तो हम भी तुमको नहीं छोड़ेंगे।झाऱखंड में दो नक्सलियों का ग्रामीणों के हाथों मारा जाना इस बात का संकेत है कि वहां के कुछ गांवों के लोगों में अब नक्सलियों का डर खत्म हो गया है।

छत्तीसगढ़ में अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है लेकिन बदलाव तो छत्तीसगढ़ के बस्तर के लोगों में भी आया है। बस्तर में नक्सलियों के गढ़ समझे जाने वाल इलाकों में सुरक्षा बलों के कैंप खुलने से यह बदलाव आया है, बस्तर के लोगों में नक्सलियों का खौफ कम तो हुआ है।एक समय बस्तर के ग्रामीण नक्सलियों के डर से नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास कार्य का विरोध करते थे। सुरक्षा बलों के कैंप खोलने का विरोध करते थे, सुरक्षा बलों को अपनी दुश्मन मानते थे।आज ग्रामीण चाहते हैं कि नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षा बलों का कैंप खुले ताकि उनके गांव में नक्सलियों का खौफ कम हो, गांव का विकास हो।

कभी पूवर्ती गांव को हिड़मा व देवा के गांव के रूप में जाना जाता था और पुलिस इस गांव में घुसने की हिम्मत नहीं करती थी हिड़मा के इलाके में पुलिस व सुरक्षा बलों के जाने का मतलब होता था कि जान जा सकती है, मारे जा सकते हो। आज हिड़मा के गांव में सुरक्षा बल का कैंप खुल जाने से गांव के लोगों में नक्सलियों का खौफ कम हो गया है, पहले हिड़मा व देवा के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती थी गांव के लोगों में। अब बताया जाता है कि कुछ माह पहले गांव के लोगों ने हिड़़मा व देवा के घरों को तोड़ दिया है और उनके परिवार वालों को घर छोड़ने को विवश कर दिया है।केदार कश्यप प्रभारी मंत्री का मानना है कि डबल इंजन की सरकार में नियद नेल्लानार से गांवों में विकास कार्यों को गति दी गई है। लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। इससे बस्तर में नक्सलियों का खौफ कम हो रहा है।

अबूझमाड़ कभी नक्सलियों का सबसे सुरक्षित किला समझा जाता था।इस इलाके में पुलिस व सुरक्षा बलों के जवानों की जाने की हिम्मत नहीं होती थी। पिछले कुछ बरसों में यहां दो सौ से ज्यादा चौकियों के खुल जाने से यहां के जंगलों के चप्पे पर सुरक्षा बल की नजर है और आज यह इलाका नक्सलियों के सुरक्षित नहीं रह गया है,यहां पहले नक्सलियों को मारना सबसे मुश्किल काम था आज यहां पर सबसे ज्यादा नक्सली मारे जा रहे हैं। इसलिए इस इलाके में नक्सलियों का डर भी कम हो गया है।अब स्थिति तो यह है कि बस्तर में नक्सली खुद को कहीं सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं वह जहां भी रहते हैं,उनको डर लगा रहता है कि पता नहीं कब सुरक्षा बल के जवान उनको घेर कर मार देंगे।

नक्सली कितने डरे हुए है, इसका पता हाल ही की एक घटना से चलता है। पिछले गुरुवार को हुई मुठभेड़ में २५ लाख के इनामी नक्सली नेता रामचंद्र उर्फ कार्तिक को बचाने के लिए नक्सलियों  ने बच्चों का इस्तेमाल ढाल की तरह किया था  इस दौरान चार बच्चे गोली लगने से घायल हो गए थे, पुलिस की ओर से उनके उपचार की व्यवस्था की गई है।सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा था कि पुलिस मुठभेड़ में हुई फायरिंग में तीन बच्चे भी घायल हुए थे। अब स्थिति साफ हो गई है वह पुलिस के कारण नहीं नक्सलियों के कारण घायल हुए थे।यह नक्सलियों के मारे जाने के खौफ में रहने का संकेत है कि वह अपने को बचाने के लिए बच्चों व ग्रामीणों का उपयोग कर रहे हैं।

 बस्तर के ग्रामीणों में अभी नक्डसलियों का डर बचा हुआ है, वह पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। जिस दिन बस्तर में नक्सलियों का खौफ खत्म हो जाएगा नक्सली न तो ग्रामीणों को डरा सकेंगे और नही उनका उपयोग अपने को बचाने के लिए ढाल की तरह कर सकेंगे। अच्छी बात यह है कि बस्तर में नक्सलियों का खौफ बहुत कम हो गया है। इसका परिणाम है कि गांवों में विकास कार्य हो रहे है। सड़कें आदि बन रही है। लोगों को योजनाओं का पूरा लाभ मिल रहा है।लोग भी चाहते हैं कि नक्सलियों का आतंक बस्तर से पूरी तरह समाप्त हो जाए।



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