राज्य की राजनीति में किसान और धान खरीदी का बड़ा महत्व है। इसलिए चाहे विपक्ष हो या सरकार उसकी कोशिश रहती है कि वह अपनी बातों से, अपने काम से किसानों को प्रभावित करे और समय समय पर बताते रहे कि देखो, हम है तुम्हारे असली हितैषी। किसानों के प्रभावित करने के सबसे अच्छा समय होता है एक चुनाव और दूसरा धान खरीदी। जो इन दोनों अवसरों पर किसानों को अपने काम या अपनी बातों से प्रभावित कर लेता है, किसान उसके साथ खड़े होते है, मानते हैं कि यह हमारा असली हितैषी है।
राजनीतिक दल के रूप में भाजपा इस बार किसानों को प्रति एकड़ २१ क्विंटल धान ३१०० रुपए में खरीदने का वादा कर प्रभावित करने में सफल रही और पिछली बार उसने प्रति एकड़ २१ क्विंटल धान ३१०० रुपए में खरीद कर साबित किया कि भाजपा जो कहती है, वह करती है।भाजपा ने किसानों को भरोसा पिछली बार जीत लिया। इस बार भी भाजपा सरकार की पूरी कोशिश है कि किसानों का धान पिछली बार की तरह खरीद लिया जाए और पिछली बार से ज्यादा खरीदी की जाए, इसके लिए ज्यादा धान खरीदने की लक्ष्य तय किया गया है। इसके लिए सरकार को जितनी चुस्त दुरुस्त व्यवस्था समय पर कर लेनी थी, सरकारी स्तर पर यह चूक भले न हुई हो लेकिन प्रशासनिक स्तर पर हुई है।
कभी आपरेटरों की हड़ताल,कभी बोरों की कमी, कभी बारिश, कभी टोकन कटाने में दिक्कत के चलते,कभी मिलरों की हड़ताल के चलते धान खरीदी प्रभावित हुई है।जितनी तेजी से धान खरीदी होनी थी, उतनी तेजी से धान खरीदी नहीं हुई है। यानी अव्यवस्था व बाधा के चलते धान खरीदी प्रभावित हुई है, जितनी धान खरीदी हुई है, उसका उठाव नहीं हुआ है,धान की खरीदी केंद्रों से उठाव न होने के कारण भी धान खरीदी प्रभावित हो रही है।
यह कोई नहीं कह रहा है कि धान खरीदी नहीं हो रही है, धान खरीदी तो रोज हो रही है। लेकिन उसकी गति धीमी है, फिर भी १४ नवंबर से १४ दिसंबर तक एक माह में पचास लाख टन धान की खरीदी हो चुकी है। इस हिसाब से दो माह में १०० लाख टन धान की खरीदी हो सकती है। उसके बाद १७ दिन में ६० लाख टन धान की खरीदी करनी है। वैसे तो यह कोई मुश्किल काम नहीं लगता है क्योंकि सरकार चाहे तो धान खरीदी के लिए १० से १५ दिन समय बढ़ा भी सकती है। इस तरह देखा जाए तो धीमी गति से धान की खरीदी होेने के बाद भी अभी उम्मीद की जा सकती है कि सरकार आने वाले महीने में धान खरीदी की पूरी व्यवस्था को ठीक कर धान खरीदी तेज कर सकती है।
सरकार के पास अभी डेढ़ माह का समय है,धान खरीदी के लिए और अब तो सब कुछ ठीक हो गया है, आपरेटरों की हड़ताल समाप्त हो गई है, बोरो की व्यवस्था भी कर ली गई है। मिलरों को भी सरकार रास्ते पर ले आई है। आधे से ज्यादा मिलर तो रास्ते पर आ गए हैं, बाकी मिलरों को भी सरकार कुछ दिनों में रास्ते में ले आएगी।मिलरों की हड़ताल से यह हुआ है कि धान खरीदी केंद्रों में धान का उठाव जो कुछ दिन पहले शुरू हो जाना था, वह कुछ दिन बाद शुरू हुआ है,अब शुरू हो गया है तो धान का उठाव तो खरीदी केंद्रों से शुरू हो जाएगा और धान का उठाव न होने से जो धान खरीदी प्रभावित हो रही थी, वह आने वाले दिनों में प्रभावित नहीं होगी।
कुछ मिलर सोच रहे थे वह धान का उठाव न कर सरकार से अपनी बात मनवा लेंगे लेकिन साय सरकार व भूपेश सरकार में अंतर है,यह वह भूल गए थे, वह यह भूल गए थे कि साय सरकार ईमानदार सरकार है, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली सरकार नहीं है, वह नरम रुख से काम कराना जानती है, आपसी बातचीत से काम कराना जानती है तो सख्ती से काम कराना जानती है। मिलरोेें ने सख्ती पर मजबूर किया तो साय सरकार ने वह भी करके दिखा दिया।
नवंबर व दिसंबर में धान खऱीदी प्रभावित होने से विपक्ष बहुत खुश था सरकार ठीक से धान खरीदी नहीं कर पा रही है, उसको अफवाह फैलाने का मौका मिल रहा था कि सरकार किसानों का पूरा धान नहीं खरीदना चाहती है इसलिए वह जानबूझकर धान कम खरीद रही है, धान का एकमुश्त पैसा नहीं दे रही है। सरकार जानती है कि विपक्ष तो अफवाह फैलाएगा ही किसानों को भड़काने के लिए,इस लिए सरकार आए दिन यह बताती रहती है कि सरकार ने कितने किसानों का कितना धान खरीद लिया है और कितने किसानों को कितना भुगतान किया जा चुका है।
कुल मिलाकर कर हर सरकार के समय धान खरीदी में कई तरह की दिक्कत होती है। अव्यवस्था भी होती है लेकिन आखिर में सरकार किसानों का जितना धान खरीदने की लक्ष्य तय करती है उतनी खरीदी करने में सफल हो जाती है।ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सरकार ने जितना धान खरीदने का लक्ष्य तय किया है, उतना धान वह न खरीद पाई हो। हर बार सरकार ने किसानों का पहले से ज्यादा धान खरीदा है तो इस बार भी वह ऐसा जरूर करेगी।
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