तो लगता है कार्यकर्ता को महत्व मिला

Posted On:- 2025-01-29




सुनील दास

नगर निकाय व पंचायत चुनाव होते हैं तो कहा जाता है कि यह कार्यकर्ताओं का चुनाव है, इसमें कार्यकर्ताओं का महत्व दिया जाएगा, उन्हीं को प्राथमिकता से टिकट दिया जाएगा। उन्हें आश्वस्त किया जाता है कि उनकी उपेक्षा नहीं की जाएगा।उनकी जगह किसी की पत्नी, किसी नेता के समर्थक,किसी मंत्री के करीबी, किसी नेता के परिजन को टिकट नहीं दी जाएगी।टिकट के लिए यही पर्याप्त होगा कि वह पार्टी का पुराना कार्यकर्ता है,बरसों पार्टी का काम कर रहा है, उसे जो भी काम पार्टी ने करने को कहा, उसने मन लगाकर किया।

यह सब तब तक कहा जाता है जब तक निकाय व पंचायत चुनाव के लिए सूची फायनल नहीं हो जाती है। सूची फाइनल हो जाती है तो पता चलता है कि पुराने कार्यकर्ताओं को फिर ठग दिया गया है। पता चलता है कि किसी नेता को टिकट नहीं मिली तो उसकी पत्नी को टिकट दे दिया गया, किसी नेता को टिकट नहीं दी गई तो उसके परिजन को टिकट दे दी गई। किसी को इसलिए टिकट के लायक समझा गया कि वह किसी बड़े नेता, मंत्री, सांसद या विधायक का समर्थक था, किसी को टिकट के लायक इसलिए नहीं समझा गया कि वह किसी कमजोर नेता का समर्थक था। नए लोगों को इसलिए टिकट नहीं दिया कि वह चुनाव नही जीत सकते थे।कुछ पुराने लोगों को इसलिए टिकट दे दिया कि वह चुनाव जीत सकते हैं। यानी कार्यकर्ताओं को टिकट न देने के कई बहाने बना दिए जाते हैं।

मीनल चौबे को टिकट दिया जाता है तो पार्टी के लोगों को लगता है कि यह सही किया गया है। पार्टी में और भी कई योग्य महिला नेत्री थी लेकिन सबसे योग्य को मौका दिया गया है लेकिन जब प्रमोद दुबे की पत्नी को टिकट दिया जाता है तो लगता है कि कार्यकर्ताओं के साथ ठीक नहीं किया गया है। महिला नेताओं काे लगता है कि पार्टी में और भी योग्य महिलाएं है, उनको क्यों मौका नहीं दिया गया। इसी तरह जगदीश रामू रोहरा,संजय पांडे,पूजाविधानी को टिकट दिया जाता है तो लगता है कि संगठन में काम करने वालों को मौका दिया गया है। पुराने कार्यकर्ताओं को मौका दिया गया है लेकिन जब मधुसूदन यादव को मौका दिया जाता है कार्यकर्ताओं को लगता है कि यह ठीक नहीं किया गया है।इसी तरह अजय तिर्की,जानकी काटजू,निखिल द्विवेदी,मलकीत सिंह को टिकट दिया जाता है तो कार्यकर्ताओं को लगता है कि यह कार्यकर्ता होने के कारण नहीं किसी नेता का खास होने के कारण टिकट दिया गया है।

इससे कार्यकर्ताओं में यह संदेश नहीं जाता है कि कार्यकर्ताओं का पार्टी में कोई महत्व है, इससे तो यही संदेश जाता है कि आप किसी नेता के खास बनोगे,किसी नेता के करीबी बनोगे तो ही टिकट मिलेगा। कार्यकर्ता होने के कारण टिकट मिलने का संदेश तो तब जाता है जब किसी चाय वाले को पार्टी मेयर का चुनाव लड़ने के योग्य समझती है।कार्यकर्ता होने का गर्व तब किसी कार्यकर्ता को होता है जब जीवर्धन चौहान को टिकट दिया जाता है।भाजपा ऐसा करती रहती है इसलिए भाजपा के कार्यकर्ता यह उम्मीद भी करते हैं कार्यकर्ता को भी भाजपा में वह मौका मिलेगा जो उसे कार्यकर्ता होने के नाते मिलना चाहिए।भाजपा ऐसा करती है तो दूसरे दल के कार्यकर्ता भी सोचते हैं कि काश ऐसा हमारे यहां भी होता।

भाजपा ने इस बार रायगढ़ नगर निगम से चाय बेचनेवाले जीवर्धन चौहान को मेयर का टिकट देकर सबको चौंका दिया। भाजपा ने और लोगों को भी टिकट दिए हैं मेयर का प्रत्याशी बनाया है लेकिन किसी की इतनी चर्चा नहीं हो रही है जितना जीवर्धन चौहान को मेयर प्रत्याशी बनाने पर हो रही है। वह भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं,रायगढ़ के रेलवे कालोनी सोनकर पारा में रहते हैं,उन्होंने १९९६ मे भाजपा की सदस्यता ली।उनको १९९८ में वार्ड अध्यक्ष बनाया गया,२००४ में भाजयुमो नगर कार्यकारिणी मेें शामिल किया गया,२००५में नगरमंत्री बनाए गए,२००६ में नगर उपाध्यक्ष बनाए गए,२००८ में नगर महामंत्री बनाए गए, २०११ में नगर अध्यक्ष बनाए गए,२०२३ से २४ तक वह प्रदेश मंत्री अजा मोर्चा,जिला भाजपा कार्यसमिति सदस्य की जिम्मेदारी संभाली।

चौहान कई पदों पर रहे पार्टी ने जो काम सौंपा वह काम कार्यकर्ता की तरह किया। इसी का फल है कि आज उन्हें मेयर पद का प्रत्याशी बनाया गया है और कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया गया है कि काम करने वालों को भाजपा में मौका जरूर मिलता है। भाजपा में ही कार्यकर्ता एक दिन पीएम बन सकता है,सीएम बन सकता है, मेयर चुनाव का प्रत्याशी बनाया जा सकता है। मेयर चुनाव लड़ सकता है, मेयर बन सकता है।वैसे तो राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस की कई बुराइयां भाजपा में भी हैं, लेकिन भाजपा एक चायवाले को मौका देकर साबित भी करती है कि एक अच्छाई है जो दूसरे दलों में नहीं है।



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