परिवार के पास ही सत्ता रहनी चाहिए...

Posted On:- 2025-01-31




सुनील दास

सत्ता का स्वाद एक बार मिल जाता है तो सत्ता से बड़ा मोह हो जाता है। सत्ता के बगैर जीवन में खुशी नहीं रह जाती है,सत्ता के बगैर जीवन अधूरा लगता है। ऐसा लगता है कि अपना कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया है, पहले की तरह कोई पूछता नहीं है।अपने शहर में अजनबी सा हो जाता आदमी। इसलिए कोशिश तो बहुत लोग करते हैं कि वह हमेशा सत्ता पर रहें, किसी पद पर रहें।सांसद नहीं तो विधायक रहें,विधायक नहीं तो जिला पंचायत अध्यक्ष रहें, जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं तो नगर पंचायत अध्यक्ष रहें, कुछ नहीं तो पार्षद,सरपंच या पंच रहें।एक एक पद के लिए लोगों की लाइन लगी रहती है जब भी चुनाव होता है तो हजारों लोग कोशिश करते हैं कि कहीं कोई पद मिल जाए। किसी चुनाव में लड़ने के लिए टिकट मिल जाए।

कोशिश तो बहुत लोग करते हैं लेकिन सफल कम ही लोग होते हैं। जिन लोगों को किसी पद के लिए टिकट मिल जाता है, वह भाग्यशाली होते हैं, जो जीत जाते हैं वह सौभाग्यशाली होते हैं।सत्ता का स्वाद जिसको मिल जाता है, वह सौभाग्यशाली बने रहना चाहता है, वह चाहता है कि उसे फिर से टिकट मिल जाए। बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरी, तीसरी बार सौभाग्यशाली बने रहते हैं। ऐसे लोग जो खुद एक दो बार सौभाग्यशाली बन जाते हैं, उनको सत्ता का बड़ा मोह जाता है, वह सोचते हैं कि कैसे सत्ता परिवार में रहे। यानी सत्ता में मैं न रहूं तो मेरी पत्नी रहे, मेरा भाई रहे, मेरा पुत्र रहे।

कांग्रेस में इसे बुरा भी नहीं माना जाता है। कांग्रेस में परिवारवाद ऊपर से लेकर नीचे तक है। सोनिया गांधी चाहती हैं कि उनका बेटा सांसद बने, उनकी बेटी सांसद बने तो नीचे कांग्रेस का नेता ऐसा क्यों नहीं चाह सकता।कहते हैं कि महाजन जिस रास्ते पर चलता है, वही रास्ता है, तो गांधी परिवार जिस रास्ते पर चलता है,वही रास्ता है। उसी रास्ते पर प्रमोद दुबे चल रहे हैं तो कोई गलत थोड़ी न कर रहे हैं,खुद मेयर नहीं बन सके तो पत्नी को मेयर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

एक नेता ऐसा करता है दूसरे नेता भी सोचता हैं, मैं क्यों नहीं कर सकता सो एजार ढेबर भी अपनी पत्नी को चुनाव लडव़ा रहे हैं। खुद भी चुनाव लड़ रहे हैं।महापौर न सही पार्षद का पद सही परिवार मे रहना चाहिए।नागभूषण राव खुद पार्षद का चुनाव नहीं लड़ पाए तो अपनी पत्नी को टिकट दिला दिया,सुंदर लाल जोगी की जगह उनकी पत्नी को टिकट दिया गया,उत्तम साहू की जगह उसकी पत्नी को टिकट दिया गया है।चिरमिरी में तो उल्टा हुआ है,मेयर पत्नी को टिकट नहीं दिया तो पति पूर्व विधायक विनय जायसवाल को मेयर का टिकट दे दिया है।

पति पत्नी चाह सकते हैं कि सत्ता परिवार में रहे तो भाई-भाई भी चाह सकते हैं।गरियाबंद के देवभोग नगर में नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए दो भाई आमने सामने हैं। बड़े भाई विनोद पांडे कांग्रेस से प्रत्याशी हैं तो छोेटे भाई मुन्नू राम पांडे भाजपा से प्रत्याशी हैं। यह भी सत्ता को परिवार के पास रखने का एक अच्छा तरीका है। दोनोें भाई में से कोई भी जीते, सत्ता तो परिवार के पास ही रहनी है। भाजपा व कांग्रेस के नेताओं में जैसे सांप नेवले जैसे बैरभाव होता है, अच्छा है दोनों भाइयों में ऐसा बैर नहीं है, वे कहते है कि दोनों भाइयों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है।अच्छी राजनीति का दोनों भाई उदाहरण हैं। राजनीति में नेताओं के बीच ऐसे ही भाई भाई जैसा संबंध रहे तो राजनीति में आज जो कटुता आ गई है, वह नहीं रहेगी।

कई लोग जहां पार्टी में परिवारवाद तो बढ़ावा देने के पक्ष में रहते हैं, वहीं भाजपा के एक विधायक विनायक गोयल कहते हैं कि हम परिवारवाद को बढ़ावा देना नहीं चाहते हैं, मेरी पत्नी की जगह पार्टी किसी और को मौका दे दे। विधायक विनायक गोयल की पत्नी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहीं हैं, उनको टिकट मिल गई है, लेकिन विधायक विनायक गोयल ने पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि उनकी पत्नी की जगह भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता को टिकट दे दिया जाए।राज्य में बहुत सारे राजनीतिक दल हैं लेकिन दलों में बहुत ही कम नेता होंगे जो चाहेंगे कि उनकी पत्नी को जो टिकट मिला है, वह पार्टी के किसी कार्यकर्ता को दे दिया जाए।

जब पार्टी में विनायक गोयल जैसे नेता रहते हैं तो आम कार्यकर्ता को बढ़ावा मिलता है, उसे चुनाव लड़ने का मौका मिलता है, किसी अकलतरा गुपचुप बेचने वाली भाजपा कार्यकर्ता संतोषी कैवर्त्य को मौका मिलता है,नगर पंचायत राहौद में पान बेचने वाले भाजपा कार्यकर्ता योगेश देवांगन को मौका मिलता है। पीएम मोदी जो कहते हैं कि राजनीति में एक लाख गैर राजनीतिक परिवार से युवाओं को आना चाहिए। वह इसी तरह आ सकते हैं जब पार्टी में ज्यादातर लोग विधायक विनायक गोयल की तरह हों सामान्य कार्यकर्ता को बढ़ावा देेने वाले।



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