कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या हो रहा है

Posted On:- 2025-02-02




सुनील दास

राजनीति में कई बार ऐसा दौर आता है जब एक राजनीतिक दल हारता चला जाता है तो उसको समझ नहीं आता है कि जीतने के लिए क्या किया जाए। क्या निरंतर हारने से दिमाग काम करना बंद कर देता है,सारी होशियारी खत्म हो जाती है।जीतने का कोई आइडिया काम नहीं आता है। सामने वाला नेता एक के बाद एक झटके देते रहता है, हर झटके से पार्टी ऊपर से नीचे तक हिल जाती है।नेता बोलने लायक नहीं रह जाते हैं,समझ में नहीं आता है कि आलोचना कैसे की जाए,पूरा देश वाह वाह कर रहा है, ऐसे में आलोचना कैसी भी की जाए, उसका कोई मोल नहीं रहता है।

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश किया तो देश का मिडिल क्लास जितना ज्यादा खुश है, देश का विपक्ष व  मोदी विरोधी उतने ही हतप्रभ हैं,यह क्या हो गया, ऐसा कैसे कर दिया, ऐसा होने की उम्मीद को नहीं थी। देश का मिडिल क्लास मतलब होता है कि देश का सबसे बड़ा वोट बैंक। कहा जाता है, माना जाता है कि देश का मिडिल क्लास मोदी के साथ है, वह मोदी के नाम पर वोट देता है। वह मांग कर रहा था, उसे खुश करने के लिए कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल मांग कर रहे थे कि सात लाख तक इनकम टैक्स नहीं लिया जा रहा है तो उसे बढ़ाकर दस लाख किया जाना चाहिए। 

पीएम मोदी कई बार देश को चौंकाने का काम करते है,इस बार मोदी ने यह काम वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को सौंप दिया था, उन्होंने अपने भाषण के आखिरी में यह घोषणा कर अब १२ लाख रुपए तक कोई इनकमटैक्स नहीं देना पड़ेगा, देश को चौंका दिया और मिडिल क्लास का दिल जीत लिया। कहां विपक्ष मांग कर रहा था कि दस लाख तक कोई टैक्स  न लिया जाए, कहां सरकार ने १२ लाख तक कोई टैक्स नहीं लेने की घोषणा कर दी है। इससे तो पूरे देश में मिडिल क्लास मोदी मोदी कर रहा है, इसका असर चुनाव में कैसे नहीं होगा, ज्यादा नही होगा तो थोड़ा तो होगा।

अब बजट पर राहुल गांधी,एम. खरगे से लेकर भूपेश बघेल तक कुछ भी क्यों न कहें। मोदी सरकार ने मिडिल क्लास का दिल जीत लिया है।इसका राजनीतिक लाभ चाहे दिल्ली विधानसभा चुनाव हो या छग का नगर निकाय पंचायत चुनाव कुछ तो असर होगा। भूपेश बघेल भले कहें कि बजट में छत्तीसगढ़ को कुछ नहीं मिला है,यह तो मिडिल क्लास विरोधी बजट है,छत्तीसगढ़ का मिडिल क्लास मोदी से खुश है तो भाजपा को वोट देगा ही। कांग्रेस के लोग भी भाजपा जीत रही है सोचकर उसमें शामिल होंगे ही।भूपेश बघेल को यह भी समझ नहीं आ रहा है कि कई बैठकों के बाद ठोंक बजाकर, नेताओं की सिफारिश पर पंचायत से लेकर मेयर तक के प्रत्याशी चुने गए हैं, वह चुनाव से नाम वापस क्यों ले रहे हैं।चुनाव मैदान से भाग क्यों रहे हैं। कांग्रेस में राहुल गांधी से लेकर भूपेश बघेल तक कहते हैं कि हम सरकार से नहीं डरते, फिर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ने से क्यों डर रहे हैं।

खबरों के मुताबिक एक दो जगह ऐसा होता तो समझ में आता है कि ऐसा गलत प्रत्याशी चुनाव की वजह से हो गया। खबरों के मुताबिक तो निकाय व पंचायत चुनाव में मतदान के पहले प्रत्याशियों के जीतने का सिलसिला शुरू हो गया है। भाजपा के १६ जिलों में ३० पार्षद बिना चुनाव ल़डे़ जीत गए हैं,इसमें छह नगर निगम, छह नगरपालिका और १८ नगर पंचायत के पार्षद हैं।कई जगह नामांकन रद्द होने के कारण भाजपा समर्थित प्रत्याशी जीते हैं तो कई जगह कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के नामांकन वापस लेने के कारण भाजपा समर्थित प्रत्याशी जीते हैं।बसना नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए भाजपा से खुश्बू अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया गया, कांग्रेस से तुलसी गौतम बंजारा व आप से अमरीन इरफान प्रत्याशी थी। यहां तो कांग्रेस व आप दोनों के प्रत्याशी ने नाम वापस ले लिया है, शेष प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिया, इससे खुश्बू अग्रवाल निर्विरोध चुनाव जीत गई हैं।

कांग्रेस जब प्रत्याशी चुनती है तो वह कहती है कि उसने चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी चुने हैं।लेकिन जब वही चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी नामांकन वापस लेकर भाजपा को जिता देते हैं,भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो भूपेश बघेल सहित कांग्रेस नेता यह नहीं कहते हैं कि यह हमारी गलती थी, हमने ही गलत आदमी को चुनाव लड़ने के लिये चुना था। भूपेश बघेल कहते हैं कि भाजपा हमारे प्रत्याशियों को डरा धमका कर, प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग कर अपने प्रत्याशियों को निर्विरोध जिता रही है। वह बारबार कांग्रेस कार्यकर्ताओं नेताओं के कहते हैं कि डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन उनके कहने का कोई असर नहीं होता है, कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता डर जाते, बिक जाते हैं, भूपेश बघेल को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसे में क्या किया जाए। क्या सत्ता नहीं रहने से नेता व कार्यकर्ता डरपोक हो जाते हैं,क्या सत्ता नहीं रहने पर नेता सही आदमी नहीं पहचान पाते हैं कौन बहादुर है, कौन डरपोक है। ऐसा कैसे हो जाता है कि जिसे पार्टी जीतने वाली प्रत्याशी समझती है,वह चुनाव लड़ने से मना कर देता है। नाम वापस ले लेता है। पार्टी की फजीहत कराता है।



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