केजरीवाल और आप को तो हारना ही था

Posted On:- 2025-02-09




सुनील दास

हिंदू परंपरा में मान्यता है कि कर्मफल अटल है, आपने जैसा कर्म किया है, वैसा फल तो कोई चाहे न चाहे उसे मिलता ही है।फल से ही पता चलता है कि किसी ने क्या क्या कर्म किए थे। कोई छिपाना चाहे तो अपने कर्म को तो छिपा सकता है लेकिन वह कर्म फल को नहीं छिपा सकता है। जब फल मिलता है तो सबको पता चल जाता है, इसे फल मिला है तो इसने कैसे कर्म किए थे।किसी ने भ्रष्टाचार किया है तो उसको फल भी वही मिलेगा जो भ्रष्टाचार करने वालों को मिलता है।कोई भ्रष्टाचार करे और चाहे फल ईमानदार को जो मिलता है, वह मिलना चाहिए तो ऐसा कभी होता नहीं है।

दिल्ली के पूर्व सीएम व आप पार्टी के संयोजक केजरीवाल ऐसा ही चाह रहे थे। आरोप तो करोड़ों रुपए के शराब घोटाला का लगा है,जेल भी भेजे जा चुके हैं।वह चुनाव में चाहते थे कि जनता उनको कट्टर ईमानदार मान ले और चुनाव में पहले जिस तरह तीन बार जिता चुकी है, उसी तरह चौथी बार भी जिता दे।वह चाहते थे जनता जांच एजेंसी, विरोधी दलों किसी की बात पर यकीन न करे, उनकी बात पर यकीन करे, वह कहते हैं कि केजरीवाल और आप के नेता सब कट्टर ईमानदार हैं तो जनता आंख मूंदकर मान ले।जनता तीन बार मान चुकी थी,२०१३,२०१५और २०२० में।तब केजरीवाल खुद को ईमानदार और बाकी सब को बेईमान कहते थे तो जनता मान लेती थी क्योंकि तब तक केजरीवाल पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा था।२० के बाद केजरीवाल पर शराब घोटाले सहित कई तरह के घोटाले के आरोप लगे।उन्होंने वह सब करना शुरू कर दिया जो उन्होंने नहीं करने की घोषणा जनता के बीच की थी। उन्होंने कहा था बड़ा घर नहीं लूंगा, बड़ी कार में नहीं चलूंगा, मैं आम आदमी जैसे रहते हैं, वैसा रहूंगा।

२० के बाद उन्होंने अपने लिए शीशमहल बनवाया,बड़ी कार मे चलने लगे,वह सब करने लगे जो दूसरे दल के ज्यादातर नेता करते हैं। जनता से उन्होंने कहा था मैं और मेरी पार्टी दूसरी तमाम पार्टी से अलग है,हम लोग सत्ता के लिए नहीं आए हैं, हम लोग तो राजनीति बदलने आए हैं।हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं।लेकिन २०२० के बाद वह पहले जैसे नहींं रहे। यह तो जनता को उनके रहने सहन, व्यवहार,लग रहे आरोप से पता चल गया। जनता इससे इस निष्कर्ष पर पहुंची की यह वह केजरीवाल नही है जो १३ से २० तक था,ईमानदार, आम लोगों का प्रतिनिधि। आम लोगों के लिए हर तरह की जरूरी सुविधाएं करने वाला।२० से २५ के बीच केजरीवाल ने नैतिक पूंजी जो १३ से २० तक कमाई थी, वह उन्होंने पांच साल में गंवा दी। दस साल सत्ता में रहने के दौरान बहुत सारे वादे उन्होंने जो दिल्ली की जनता से किए थे,वह पूरे नहीं किए।यमुना का साफ करवाने का वादा किया था, लेकिन दस साल में वह यमुना को साफ नही करवा सके। दिल्ली की खराब सड़के उनके समय और खराब हो गईं, यमुना जितनी गंदी थी और गंदी हो गई। दिल्ली जितना प्रदूषित थी और प्रदूषित हो गई। 

किसी भी राज्य का विकास उसके इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से ही होता है, केजरीवाल ने दिल्ली के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया।उनकी कोशिश यही रही कि जनता को जो मुफ्त पानी, बिजली, शिक्षा,चिकित्सा की सुविधा मिल रही है, वह मिलती रहे,जनता इससे संतुष्ट रहे। वह उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को सच न माने, विकासकार्य न होने की अनदेखी करे।शीशमहल की ओर ध्यान न दे।ऐसा तो हो नहीं सकता था, यही हुआ केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार कहते रहे लेकिन अब जनता ने मानना छोड़ दिया। जनता ने मान लिया कि यह केजरीवाल पहले वाला ईमानदार केजरीवाल नहीं है, इसलिए जनता ने चौथी बार उनको हरा दिया। उनकी पार्टी को तो हराया ही, केजरीवाल सहित उनके तमाम बड़े नेताओं को भी हरा दिया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। ऐसे में केजरीवाल को तो हारना ही था।

केजरीवाल को इसलिए भी हारना था कि इस बार दिल्ली की जनता के सामने दो दशक से ज्यादा समय से सीएम,पीएम रहने के बाद ईमानदार पीएम नरेंद्र  मोदी थे, केजरीवाल अपनी नैतिक व ईमानदारी की पूंजी मात्र दस साल में गंवा चुके थे और नरेंद्र मोदी ने पिछले बीस साल में अपनी नैतिक व ईमानदारी की पूंजी को बढ़ाया है।देश की जनता जानती है कि पीएम मोदी जिस बात की गारंटी देते हैं वह जरूर पूरी होती है।मोदी की ईमानदारी व मोदी की गारंटी पर दिल्ली की जनता ने यकीन किया और २७ साल बाद दिल्ली को देश की विकसित राजधानी बनाने के लिए भाजपा को जिताया। दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतना आसान नहीं था, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने अपनी गलतियों को सुधार कर हरियाणा व महाराष्ट्र जिस तरह से जीता था, उसी तरह जीतने की याेजना बनाई और अपने जनाधार को बढ़ाय़ा। जो लोग भाजपा को वोट नहीं देते थे उन लोगों तक भाजपा पहुंची और उनको भरोसा दिलाया कि उनकाे भाजपा केजरीवाल से बेहतर सुविधाएं देंगी। पिछले दो चुनावों की तरह संघ ने भाजपा को चुनाव जिताने के लिए हजारों बैठके कीउसी तरह की बैठके दिल्ली में भी की गईं और लोगों को भाजपा को वोट देने के लिए तैयार किया। इन तमाम बातों का कुल मिलाकर असर यह हुआ कि भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा और वह आप व कांग्रेस को हराने में सफल रही।जब अमित शाह किसी काम को हाथ में लेते हैं तो उस काम में सफलता जरूर मिलती है, दिल्ली फतह करने में पीएम मोदी के साथ ही शाह की भी अहम भूमिका रही है।

कांग्रेस को शुरू से पता था कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत नहीं सकती क्योंकि वह दिल्ली में इतनी कमजोर थी कि यह सोच ही नहीं सकती थी कि वह आप को हराकर अपनी सरकार बना सकती है। जबकि इसी दिल्ली में कभी कांग्रेस ने लगातार १५ साल राज किया है।आज वह इतनी कमजोर है कि एक सीट जीत नहीं पाती है.ऐसा एक बार नहीं छह बार हो चुका है। तीन लोकसभा की तीन विधानसभा में वह एक सीट नहीं जीत सकी है। इस बार माना जा रहा था कि कांग्रेस अकेले चुनाव लडे़गी तो पूरी मजबूती से चुनाव लड़ेगी। उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी यह तय नहीं कर सके कि इस चुनाव मे उनको हराना किसको है।भाजपा को हराना है या केजरीवाल को हराना है।शुरु में उऩको लगा कि भाजपा को हराना चाहिए, भाजपा को हराने के लिए केजरीवाल के खिलाफ नरमी बरतनी पड़ेगी। कुछ दिन नरमी बरती भी, इसका विराेध हुआ पार्टी के भीतर तो आखिरी कुछ दिन राहुल गांधी ने केजरीवाल के खिलाफ प्रचार किया लेकिन तब तक देरी हो चुकी थी क्योंकि कांग्रेस को जो नुकसान होना था वह हो चुका था, सबको अंदाजा था कि केजरीवाल को कांग्रेस नुकसान पहुचाएगी तो चुनाव भाजपा जीत जाएगी और हुआ भी यही।कांग्रेस ने आप नेताओं के वोट काटे तो १४ आप नेता चुनाव हार गए और बहुमत भाजपा को मिला। इन नेताओं में केजरीवाल, सिसोदिया,सत्येंद्र जैन, सोमनाथ भारती, सौरभ भारद्वाज जैसे नेता शामिल थेे। अब आने वाले दिनों में आप तो कांग्रेस पर यही आरोप लगाएगी की उसने आप को हराकर भाजपा को जिताया है, इसका गठबंधन की राजनीति पर भी कुछ तो असर पड़ेगा।यानी दिल्ली में आप की हार और भाजपा की जीत से इंडी गठबंधन में नेतृत्व को लेकर खींचतान तो जरूर बढ़ेगी।



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