परंपरा है तो जीतने के लिए निभाना पड़ता है

Posted On:- 2025-02-11




सुनील दास

छत्तीसगढ़ में विधानसभा,लोकसभा के चुनाव के बाद अब नगरीय निकाय व त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं।चुनाव होते हैं तो बहुत सारे लोगों को लगता है कि चुनाव तो वह भी जीत सकते हैं,चुनाव जीतकर वह भी पार्षद, किसी निकाय का अध्यक्ष या महापौर भी बन सकते हैं।इसलिए चुनाव तो बहुत लोग लड़ते हैं लेकिन जीतते कुछ ही लोग है। जीतने वाले किसी राजनीतिक दल के होते हैं, किसी राजनीतिक दल के बागी होते हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ते तो बहुत लोग हैं लेकिन जिसके अच्छी किस्मत होती है और जो चुनाव की सारी परंपरा अच्छे निभा सकता है, वही जीतता है। ज्यादातर निर्दलीय तो किसी को हराने के लिए चुनाव लड़ते हैं या चुनाव हारने के लिए लड़ते हैं।

चुनाव के लिए चुनाव आयोग का होना जरूरी होता है। चुनाव आयोग का काम होता है स्वतंत्र,निष्पक्ष चुनाव कराना।इसके लिए वह चुनाव के दौरान वह सारी व्यवस्था करता है जिससे चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष हो सके।लोग बिना डरे, बिना किसी के लालच मे आए अपनी पसंद का जनप्रतिनिधि चुन सकें।चुनाव तब ही सफल माना जाता है जब ज्यादा से ज्यादा लोग  अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट डालें, इसलिए चुनाव के पहले हमेशा लोगों को बताया जाता है कि मतदान करना आपका अधिकार है, आपको जरूर वोट करना चाहिए। चुनाव की तरफ से बहुत से अभियान चलाये जाते हैं लोगों से अपील की जाती है कि शतप्रतिशत मतदान करें। आजादी के बाद से आज तक चुनाव आयोग अपनी तमाम कोशिशो के बाद भी शतप्रतिशत मतदान नहीं करा सका है, कुछ प्रतिशत वोट बढ़ जाए तो चुनाव आयोग उसे अपनी बड़ी सफलता मानता है। चुनाव आयोग कोशिश कर सकता है लोग ही प्रेरित नहीं होते हैं मतदान के लिए तो वह क्या कर सकता है।

चुनाव आयोग तो चाहता है कि चुनाव में कोई भी प्रत्याशी लोगों को कुछ देकर अपने पक्ष में वोट न डलवा पाए। लोगों को भी समझाया जाता है कि किसी से कुछ लेकर किसी को वोट न करें।.चुनाव आयोग की कोशिशों से चुनाव के पहले नगदी,शराब, साड़ी बहुत सारे सामान जब्त किए जाते हैं लेकिन चुनाव आयोग चुनाव के आखिरी दिन शराब,पैसा बांटने से रोक नहीं पाता है। चुनाव के आखिरी दिन कुछ प्रत्याशी कुछ न कुछ बांटने का जुगाड़ कर लेते हैं। सब जानते हैं कि यह बुरी परंपरा है लेकिन सब मानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए ऐसा करना ही पड़ता है, यह परंपरा बरसों से चली आ रही है और आगे भी जारी रहने वाली है, इस पर कोई रोक नहीं लगा सका है, आगे भी इस पर शायद ही कोई रोक लगा पाए क्योंकि मान्यता ही ऐसी है कि आखिरी दिन मतदाताओं को बांटने पर जीत सुनिश्चित हो जाती है।

मतदान के पहले वाले दिन और रात कोई शराब बांटता है,कोई साड़ी बांटता है, कोई पैसा बांटता है, कोई गिफ्ट देता है, कोई  मिठाई का डब्बा नगदी के साथ देता है। क्योंकि सब जीतना चाहते हैं।रिजल्ट आने पर कई लोगों को पता चलता है कि बांटने का फायदा तो एक ही प्रत्याशी को हुआ है, जो जीता है।कई लोगों को अफसोस होता है कि इतना बांटा और मैं नहीं जीता। इसकी वजह यह है कि निचले तबके का झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला वोटर भी होशियार हो गया है। वह जानता है कि अभी जितना मिल रहा है ले लो, बाद में चुनाव जीतने वाला कुछ देने से रहा। इसलिए कुछ वोटरों के लिए चुनाव खाने-पीने और पैसा लेने का समय रहता है, इस दौरान ही उनको लगता है कि उनका कोई मोल है, जिसे देखों उसके सामने हाथ जोड़े खड़ा रहता है, बड़े प्यार से वोट मांगता है। 

शहर के बाकी लोगों के लिए पार्टी की तरफ से घोषणापत्र जारी किया जाता है कि हम आपको क्या क्या देने वाले हैं। विज्ञापनों के जरिए यह भी बताया जाता है कि हम कितना दे चुके हैं ताकि उनको वोट देेने वाले भरोसा करें कि यह तो देने का वादा करके जरूर देता है।कोई वादा करता है कि हम आपके लिए स्मार्ट शहर बनाएंगे तो कोई वादा करता है कि हम आपके लिए सुंदर शहर बनाएंगे। सबके वादे सुनने पर ऐसा लगता है कि इनसे ईमानदार तो कोई हो नहीं सकता। देखो इनको कितनी चिंता है शहर की।एक बार मेयर व पार्षद बन जाने के बाद किसी को याद नहीं रहता है कि हमने क्या वादा किया था, चुनाव के बाद सबको यही चिंता रहती है कि जितना खर्च हुआ है चुनाव में, उतना बटोरना जरूरी है। ज्यादातर लोगों को बटोरने से ही फुरसत नहीं मिलती इसलिए उनके पास जनता के लिए वक्त नहीं रहता है।जनता मिलना चाहती है तो वह मिलते नहीं है। एक दिन मतदान करना था तो लोगों ने मतदान कर दिया है। यह उनका काम था, उन्होंने कर दिया। अब जिनको वोट मिला है, जो जीतेंगे वह क्या नया करते हैं आने वाले समय में पता चलेगा।



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