राजनीति में हमेशा वह नहीं होता है तो जो एक पक्ष चाहता है तथा सोचता है कि वह जो कर रहा है वही सही है। कभी कभी वह भी हो जाता है जो एक पक्ष सोच नहीं पाता है। पंचायत मंत्री पद से इस्तीफा देने का मामला आलाकमान के पास गया और कांग्रेस का एक पक्ष मान के चल रहा था कि अपने इस्तीफे वाला पत्र सार्वजनिक करके टीएस सिंहदेव ने अ्रनुशासनहीनता की है। इसलिए आलाकमान उस पर तो कार्रवाई तो करेगा ही। ऐसा नहीं हुआ है,टीएस सिंहदेव के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई आलाकमान ने नहीं की है।भूपेश बघेल सरकार ने पंचायत मंत्री का उनका इस्तीफा स्वीकार कर पंचायत विभाग अब रविंद्र चौबे को सौंप दिया गया है।यानी वह पंचायत विभाग अब रविंंद्र चौबे देखेंगे जिससे टीएस सिंहदेव ने इस्तीफा दिया है। पंचायत विभाग से टीएस सिंहदेव ने इस्तीफा इसलिए दिया था कि हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरे पर आए केद्रीय मंत्री ने कहा था कि विभाग ने एक भी आवास गरीबों के लिए नहीं बनवाया है। यह बात श्री सिंहदेव का बुरी लगी कि वह गरीबों के लिए तक काम नहीं करवा पा रहे हैं। इसके अलावा वह इस बात से भी नाराज थे कि उनक विभाग के हड़ताल करने वालों को उन्हें बताए बिना बहाल कर दिया गया। वह विभाग के लिए कुछ कहते थे तो उनकी बात सुनी नहीं जाती थी। विभाग का काम न होने से जनता में उनकी छबि खराब हो रही थी, काम न होने के लिए उन्हे दोषी माना जा रहा था। इसलिए उन्होंने विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस बात की जानकारी आलाकमान को भी दे दी थी। यह सभी जानते हैं कि भूपेश बघेल व टीएस सिंहदेव को जय-वीरु की जोड़ी कहा जाता है। उन्हें राज्य में भूपेश बघेल का विकल्प माना जाता है। लंबे समय तक दोनों की जोड़ी बनी रही। लेकिन ढाई-ढाई साल सत्ता का सवाल उठने के बाद दोनो के बीच पहले वाली बात तो अब नहीं है। भूपेश बघेल समर्थक विधायक जब भी मौका मिलता है, टीएस सिंहदेव की छबि आलाकमान की नजर में खराब करने की कोशिश करते हैं। इस बार भी यही हुआ। जैसे श्री सिंहदेव ने अपने इस्तीफे की चिट्ठी सार्वजनिक की। भूपेश बघेल समर्थक विधायकों ने इसे अ्रनुशासनहीनता का मामला बताकर कार्रवाई की मांग की। पीएल पुनिया भी विधायकों की कारवाई की मांग वाला पत्र दिल्ली लेकर गए। सबको उम्मीद थी इस बार तो श्री सिंहदेव के खिलाफ आलाकमान कार्रवाई जरूर करेगा। लेकिन आलाकमान ने कोई कार्रवाई अब तक नहीं की है। यानी कि वह नहीं चाहता है कि इस मामले में सिंहदेव के खिलाफ कोई कार्रवाई की जरूरत है। आलाकमान के कहने पर ही तो रविंद्र चौबे को पंचायत विभाग सौंपकर इस मामले को निपटा दिया गया है। श्री सिंहदेव भी तो यही चाहते थे। पंचायत विभाग के मंत्री का उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाए। जो काम भूपेश बघेल सरका ने कुछ दिन बाद किया है वह काम तो वह श्री सिंहदेव की चिट्ठी के दूसरे दिन भी कर सकती थी। इस बार भूपेश बघेल समर्थक विधायकों ने उन्हे अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर डराने की कोशिश की लेकिन टीएस सिंहदेव इस बार डरे नहीं, उन्होंने कहा है कि मैने अनुशासनहीनता की है,वह ऐसा सोचते हैं तो वह सोचते रहे। उन्होंने कहा नही लेकिन उनके कहने का मतलब था कि मैंने कोई अनुशासनहीनता नहीं की है। अब सवाल उछता है कि जब यहां के विधायक चाहते थे कि टीएस सिंहदेव के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए तो आलाकमान ने कार्रवाई क्यों नहीं की। कांग्रेस आलाकमाान क्यों विधायकों की तरह सोचेगा। वह तो आलामान की तरह की सोचेगा।हो सकता है कि आलाकमान को कांग्रेस की मजबूती व अगले चुनाव में जीत के लिए टीएस सिंहदे उपयोगी लगते हों। वह श्री सिंहदेव का भूपेश बघेल का विकल्प समझता हो।
कहा जाता है कि भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा संक्रामक बीमारी है। बहुत तेजी से फैलती है। जैसे ही पता चलता है कि ऊपर का आदमी भ्रष्ट है, सरकार का मुखिया भ्रष...
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