चाहे परिवार हो, समाज हो या सरकार हो आदमी वह हमेशा दे नहीं सकता,खर्च नहीं कर सकता,। क्योंंकि देने व खर्च करने के लिए अर्जित करना पड़ता है, कमाना पड़ता है। सीधी सी बात है पैसे खर्च करना है, किसी को नगद पैसे देना है तो पहले उसे कमाना पड़ता है, व्यवस्था करनी पड़ती है। इसलिए कोई भी हमेशा देने वाला या खर्च करने वाला नहीं हो सकता, उसे पैसे कमाना पड़ता है, पैसे की व्यवस्था करनी पड़ती है। कई मुख्यमंत्री कहते हैं कि हम तो देने वाले हैं, हम जनता से लेने वाले नहीं है। उन्हें लेने वाला बनना पड़ता है। हर सरकार अगर खर्च बढ़ा रही है तो उसे पैसों की व्यवस्था तो करना ही पड़ेगा। सभी सरकारें पैसों की व्यवस्था तीन तरह से करती हैं। एक तो जनता से सीधे टैक्स लेकर और दूसरे अप्रत्यक्ष टैक्स बढ़ाकर। तीसरी तरीका होता है कर्ज लेने का। भूपेश बघेल सरकार अक्सर कहती है दूसरी सरकारों से तुलना करते हुए कि हमारी सरकार तो देने वाली है। हकीकत यह है कि उसे भी पैसों की व्यवस्था करने के लिए जनता से लेना पड़ता है। हाल ही में सरकार ने स्टांप शुल्क बढ़ाया है,ऊर्जा प्रभार बढ़ाया है, इससे पहले बिजली प्रति यूनिट कुछ पैसे बढ़ाए थे।केंद्र सरकार ने डीजल पेट्रोल के दाम घटाए थे तो राज्य सरकार ने घटाने मना कर दिया था। यानी दूसरे राज्यों की तुलना में पेट्रोल डीजल पर ज्यादा पैसे ले रही है। तो दूसरी सरकारों की तरह अब भूपेश सरकार ने जनता से लेना शुरू कर दिया है। हर सरकार की एक देने की सीमा होती है, भूपेश सरकार की वह सीमा अब समाप्त हो गई है। अब उसे जनता से लेना ही पड़ेगा। भूपेश सरकार भी अन्य सरकारों की तरह कर्ज ले सकती है, भूपेश सरकार ने कर्ज भी लिया है,कई बार जनता को देने के लिए भूपेश सरकार को पैसे कर्ज लेने पड़े हैं, कर्ज लेने की एक सीमा है। जहां जनता को देने व कर्ज लेने की सीमा खतम हो जाती है तो वहां से जनता से लेने की सीमा शुरू होती है।यह काम सरकार करना नहीं चाहती क्योंकि इससे उसकी लोकप्रियता कम होती है। सरकार के लिए मुश्किल तब होती है जब दूसरों की तो टैक्स बढ़ाने के लिए आलोचना करती है, महंगाई के लिए दोषी ठहरती है और वही टैक्स खुद भी बढ़ाती है, वह खुद भी अपने राज्य में महंगाई बढ़ाती है। सरकार कह सकती है कि वह तो सीमेंट प्लांट,,स्टील संयंत्र,आटा चक्की वालों से ज्यादा ऊर्जा प्रभार ले रही है, यह बात सही है कि सरकार ने तो उद्योंगो का ऊर्जा प्रभार बढ़ाया है। लेकिन यह ऊर्जा प्रभार उद्योग खुद कहां देते हैं् ,वह भी तो इसे जनता से ही लेंगे। लोहा,सीमेंट सब महंगा होगा, आटा चक्की का ऊजा प्रभार भी एक प्रतिशत बढ़ाया गया है,यानी आदमी को आटा वैसे भी केंद्र सरकार व राज्य सरकारों की सहमति से जीएसटी पांच प्रतिशत बढ़ाने से महंगा मिल रहा था। अब आटाचक्की से आटा पिसाना भी महंगा हो जाएगा। कांग्रेस सरकार केंद्र सरकार की आलोचना दही, पनीर का दाम बढ़ाने के लिए करती है लेकिन वह आटा चक्की का एक प्रतिशत बढ़ाते वक्त नहीं सोचती है कि इससे जनता का आटो महंगा पड़ेगा। जो जो लोग जितना ऊर्जा प्रभार ज्यादा देंगे वह उतना ही पैसा जनता से ले लेंगे। कोई भी सरकार किसी पर भी टैक्स बढ़ाती है तो वह पैसा आखिरी में वसूला जनता से ही जाता है। बिजली महंगी होने से क्या वह सभी चीजें महंगी नहीं होती जिसे बनाने में बिजली का उपयोग किया जाता है। पेट्रोल डीजल का दाम बढ़ाने पर जिस तरह महेगाई बढ़ती है,उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है,उसी तरह बिजली महंगी होने पर भी महंगाई बढ़ती है तथा उसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है। सरकार कह सकती है कि यहां तो जनता को बिजली हाफ का फायदा मिल रहा है, यह भी सच है कि उसके लिए पहले से ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है।
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