नेताओं, कार्यकर्ताओं को जोड़े रखना भी तो चुनौती...

Posted On:- 2024-07-07




सुनील दास

पार्टी एक बार लोकसभा का चुनाव हार जाए तो पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ रखना मुश्किल होता है। दूसरा लोकसभा चुनाव हार जाए तो पार्टी छोड़ने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं का लंबा सिलसिला शुरू होता जाता है। यदि पार्टी तीसरा लोकसभा भी हार जाए तो पार्टी के लिए नेताओं व कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोडे़ रखना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। राजनीति में माना जाता है कि दल तब ही एकजुट व मजबूत रहता है जब पार्टी सत्ता में रहे। निरंतर सत्ता में रहे।इसके उलट यदि पार्टी निरंतर सत्ता से बाहर रहती है तो न तो वह एकजुट रहती है और न ही मजबूत रहती है। जितनी बार हारती है, उतनी कमजोर होती जाती है।

देश में कांग्रेस की ऐसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी है जो लोकसभा का तीन चुनाव हार चुकी है। इसलिए अन्य क्षेत्रीय दलों की तुलना में उसके लिए अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौैती है। तीन चुनाव हारने के बाद पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को भरोसा नहीं रह जाता है कि अब उनकी पार्टी कोई चुनाव जीतने वाली है। ऐसे में स्वाभाविक है कि वह दूसरे राजनीितक दलों में अपना भविषय तलाशने का प्रायस करेंगे। दस साल में जितने कांग्रेस नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उतनी कभी नहीं छोड़ी क्योंकि कांग्रेस पहले एक चुनाव हार जाती थी तो पांच साल बाद दूसरा चुनाव जीत जाती थी। कभी ऐसा नहीं होता था कि कांंग्रेस दो चुनाव, तीन चुनाव लागतार हारे। इससे नेताओं व कार्यकर्ताओे में भरोसा रहता था कि एक चुनाव हार गए तो दूसरा चुनाव हम जीत लेंगे।

तीन चुनाव हारने के बाद ऐसा भरोसा नहीं रह जाता है तो पार्टी के नेताओं के सामने नेताओं व कार्यकर्ताओं को किसी तरह भरोसा दिलाया जाए कि जल्द ही हमारी सरकार बनने वाली है। चुनाव में तो कांग्रेस को बहुमत मिला नहीं है, उसकी सरकार भी नहीं बनी है, फिर भी राहुल गांधी व कांग्रेस नेता आए दिन यह बयान इसीलिए देते हैं कि मोदी सरकार कमजोर है, वह कभी भी गिर सकती है,उसे तो हम अगस्त में गिरा देंगे। लालू यादव ने जो बयान हाल में दिया है कि अगस्त में मोदी सरकार गिर जाएगी,अपनी पा्र्टी के नेताओं को आश्वस्त करने की कोशिश है कि केंद्र में हमाही सरकार बनने वाली है। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गाधी भी यही कर रहे हैं, उन्होंने हाल ही में अहमदाबाद में फिर कहा है कि जिस तरह भाजपा सरकार ने यहां कांग्रेस कार्यालय को तोडा है, हम भाजपा सरकार को तोड़ देंगे. जिस तरह भाजपा को हमने अयोध्या में हराया है, उसी तरह गुजरात में भी अगल चुनाव में हार देंगे। राहुल गांधी को पार्टी को अगले चुनाव तक एकजुट करना है तो यह तो कहना ही पड़ेगा कि अगला चुनाम हम जीतेंगे।लेकिन गुजरात में कांग्रेस दो दशक से चुनाव हारती आ रही है,इसलिए उसके लिए गुजरात में भाजपा को हराना आसान तो नहीं है लेकिन वह यह उम्मीद कर सकते हैं कि दो दशक में भाजपा के खिलाफ जो नाराजगी है, हो सकता है वह अगले चुनाव में उभर कर सामने आ जाए और कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प न होने के कारण लोग कांग्रेस को ही चुने।

राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस भाजपा को अकेले नहीं हरा सकती।जिस अयोध्या में भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं, वह भी झूठ कह रहे हैं, भाजपा फैजाभाद लोकसबा चुनाव हारी है, अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को बढ़त मिली है। भाजपा  के लिए अयोध्या एक बड़ा मुद्दा रहा है, इसलिए अयोध्या में भाजपा को हराना कांग्रेस बड़ी घटना बताने का प्रयास कर रही है। हकीकत यह है कि आज भी कांग्रेस को यूपी में जो सफलतका मिली है, उसके पीछे सपा व अखिलेश यादव का सहयोग है। अखिलेश यदि सहयोग नहीं करते तो राहुल गांधी राहबरेली तक नहीं जीत सकते थे।

राहुल गांधी को समझने की जरूरत है कि वह झूठ की राजनीति कर एक बार फायदा उठा सकते हैं। जब देश के लोग व पार्टी के लोग भी समझ जाएंगे तो राहुल गांधी व कांग्रेस को झूठ की राजनीति से ऐसा नुकसान होगा कि वह बरसों उसकी भरपाई कर पाएंगे। पीएम मोदी ने सही कहा है कि कांगरेस के मुंह झूठ का खून लग गया है। यही वजह है कि उसके नेता देश के लोगों के साथ ही अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं से भी झूठ बोल रहे हैं ताकि वह पार्टी छोड़कर न जाएंं। राहुल गांधी के हर झूठ की पोल तो देरसबेर खुल जाती है। गुजरात में राहुल गांधी ने जो झूठ बोला है, उसकी पोल भी अगले चुनाव में खुल जाएंगी। तब वह गुजरात के नेताओं व कार्यकर्ताओं से क्या कहेंगे।



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