विपक्ष मतलब सदन में रोज हंगामा

Posted On:- 2024-07-22




सुनील दास

हर बार संसद सत्र के पहले सरकार सर्वदलीय बैठक बुलाती है।यह परंपरा है. इसमें सदन सुचारु चलने देने पर सहमति बनती है। बैठक में शामिल हर दल सरकार से अपनी मांग करता है। इस बार भी यही हुआ है। सर्वदलीय बैठक में 44 राजनीतिक दल शामिल हुए। सभी ने उम्मीद की इस बार संसद सत्र में कई विषयों पर सार्थक चर्चा होगी।सभी दलों ने हमेशा की तरह सरकार से कई तरह की मांगें की। इस बैठक में ज्यादातर ऐसी मांगे की गई हैं जो सरकार शायद ही पूरी करे। कई दलों ने अपने राजनीितिक फायदे के लिए वह मांगे कर दी जो हकीकत में नीतीश कुमार व चंद्रबाबू नायडू को करनी थी। सरकार से मांग करने में भी होड़ सी लगी रही। बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग नीतीश कुमार की पार्टी को करनी थी तो यह मांग कांग्रेस के जचराम रमेश ने की। वहीं आध्र प्रदेश के लिए मांग चंद्रबाबू नायडू को करनी थी तो यह मांग वायएसआर कांग्रेस ने की।

इस मौके पर कांग्रेस ने सरकार से मांग की कि उसे लोकसभा का उपाध्यक्ष पद दिया जाना चाहिए। कांग्रेस जानती है कि वह जो मांगेॆ कर रही है, वह सरकार पूरी तो करेगी नहीं। फिर भी वह मांग कर रही है तो इसलिए की इसी बहाने संसद में हंगामा किया जा सके। 2014 के बाद से विपक्ष मतलब संसद में हंगामा रह गया है। बैठक में जरूर बहस की उम्मीद की जाती है लेकिन विपक्ष तो संसद में वही करता है जो वह करना चाहता है। वह हर ससंद सत्र में हंगामा ही तो करता रहा है। पहले कहा जाता था कि वह संख्या मे कमजोर है, इसलिए हंगामा करके सरकार को अपनी ताकत दिखाया करता था, 14 से 19 तक उसने यही किया है। अब उसकी ताकत थोड़ी से बढ़ गई है तो कहा यही जाएगा कि अब उसके पास ज्यादा ताकत है,इसलिए वह अब पहले से ज्यादा हंगामा करेगा।

जब भी संसद या विधानसभा का सत्र शुरू होना होता है तो एक दिन पहले ही ज्यादातर लोग यही उम्मीद करते हैं कि संसद व विधानसभा का सत्र हंगामेदार होगा। सोचने वाली बात यह है कि हमेशा यही क्यों कहा  जाता है कि सत्र हंगामेदार ही क्यों होगा। यह क्यों नही कहा जाता है कि संसद व विधानसबा में सार्थक चर्चा होगी। इसकी वजह यही है कि विपक्ष में जो भी राजनीतिक दल रहता है, वह यही करता रहा है। इससे मान लिया गया है कि संसद व विधानसभा में  विपक्ष का काम सरकार से सवाल पूछना है और हंगामा करना है। अब विपक्ष से कोई उम्मीद ही नहीं करता है कि वह संसद या विधानसभा में हर मुद्दे पर बहस करेगा। बहस के जरिए साबित करेगा कि सरकार हर क्षेत्र में फेल है।

इसकी वजह यह है कि बहस तो वही कर सकता है जिसे विषय के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी होती है। आजकल ज्यादातर नेताओं को विषय की ज्यादा जानकारी नहीं होती है। अतीत व वर्तमान का पता नहीं होता है तो वह खुद को प्रभावी नेता साबित करने के लिए संसद  व विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा हंगामा करते दिखते हैं। संसद हो विधानसभा बहस से बचने का सबसे अच्छा तरीका तो यही होता है कि सरकार से मांग ही ऐसी की जाए कि वह माने ही नहीं. सरकार विपक्ष की बात नहीं मानेगी तो विपक्ष हंगामा करेगा या बहिष्कार करेगा।

14 से 19 हो या 19 से 24 हो, संसद के हर सत्र को हंगामा करके बरबाद किया गया। संसद सत्र के पहले हमेशा विदेश की किसी खबर को लेकर विपक्ष ने संसद नहीं चलने दी है। इसलिए अब जब उसकी संख्या कुछ बढ़ गई है तो वह अपनी ताकत दिखाने के लिए पहले से ज्यादा हंगामा तो करेगा ही। जब हंगामा करना होता है तो किसी बड़े मुददे की कोई जरूरत नहीं होती है, छोटे से मुद्दे को ही बड़ा मुद्दा बना दिया जाता है।

अब राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं यानी कांग्रेस ने उनको पीएम मोदी के सामने संसद में खडा़ कर दिया है तो कांग्रेस की तो यही कोशिश होगी कि यह साबित किया जाए की राहुल गांधी पीएम मोदी को टक्कर दे रहे हैं। वह पीएम मोदी का विकल्प हैं। इसके लिए यदि कांग्रेस को पिछली बार की तरह संसद मं रोज हंगामा करना पड़े तो करने से नहीं चूकेगी । कांग्रेस राहुल गांधी को हंगामा कर बड़ा नेता बनाना चाहती है तो यह उसका अधिकार है लैेकिन हकीकत यह है कि संसद या सड़क पर कोई हंगामा कर बड़ा नेता नहीं बनता है। गंभीरता से जनता के हित में काम करनेवाले नेता ही देश के बड़े नेता बनते हैं।



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