राज्य में किसान शुरू से बाकी फसलों की तुलना धान का उत्पादन ज्यादा करते रहे है।इसलिए राज्य की मुख्य फसल का दर्जा शुरू से धान को मिला हुआ है।पहले धान की कीमत कम मिला करती थी,इसलिए धान की खेती को घाटे का सौदा माना जाता था। राज्य की राजनीति में किसान का महत्व बढ़ने पर राजनीतिक दलों ने धान की कीमत भी बढ़ाई है और पहले से ज्यादा हर साल धान की खरीदी भी की है। इससे किसानों को धान का सबसे ज्यादा दाम राज्य में ही मिल रहा है। चाहे रमन सिंह का समय हो, भूपेश बघेल का समय हो या विष्णुदेव साय का समय हो किसानों का ज्यादा खरीदने के साथ ही उनको ज्यादा पैसा देने का पूरा प्रयास किया गया है।
राज्य में जो किसानों का साथ देता है, किसान उसका साथ देते हैं और किसान जिसका साथ देते हैं,राज्य में सरकार भी उसकी ही बनती है।रमन सिंह ने ज्यादा धान खरीदा, ज्यादा पैसा दिया तो रमन सिंह की सरकार राज्य में सबसे ज्यादा समय यानी पंद्रह साल रही।भूपेश बघेल ने चुनाव में रमन सरकार से ज्यादा पैसा देने का वादा किया तो १८ के चुनाव में किसानों ने भूपेश बघेल का साथ दिया और उनकी सरकार राज्य में बनी । पांच साल मे भूपेश बघेल को वहम हो गया या अहंकार आ गया कि राज्य में किसानों को वह सबसे ज्यादा पैसा दे रहे हैं, सबसे ज्यादा धान खरीद रहे हैं तो उनसे ज्यादा धान की कीमत कोई नहीं दे सकता,उनसे ज्यादा किसानों का धान कोई खरीद नहीं सकता।भाजपा ने चुनाव में किसानों को भूपेश सरकार से ज्यादा पैसा और ज्यादा धान खरीदने का वादा किया,बकाया बोनस देने का वादा किया और किसानों ने भाजपा का साथ दिया।
पिछले साल सीएम साय ने ३१०० रुपए में किसानों से प्रति एकड़ २१ क्विंटल धान खरीदा।राज्य में औसतन प्रति एकड़ धान का उत्पादन १८ से २० क्विंटल होता है, इसलिए किसानों अपना पूरा धान साेसायटी में ही बेचते हैं, इससे उनको पहले की तुलना मे ज्यादा पैसा मिल रहा है।छह साल पहले २०१७-१८ में ५६.८८ लाख टन की धान की खरीदी हुई थी।२३-२४ में यह बढ़कर १४४.९२ लाख टन हो गई है यानी तीन गुना ज्यादा धान की खरीदी हो रही है।पंजीकृत किसानों की संख्या २०१७-१८ में १५७७३३२ थी जो २३-२४ में बढ़कर २६८५००० हो गई है। धान का रकबा १७-१८ में २४४६५४६हेक्टेयर था जो २३-२४ में बढ़कर ३३५१००० हो गया है।हर साल किसानों की संख्या, धान की खरीदी व धान का रकबा बढ़ता जा रहा है।
माना जा रहा है कि इस खरीफ सीजन में प्रदेश में रिकार्ड १८० लाख टन होने का अनुमान है। इसके एवज में किसानों की जेब में ५० हजार करोड़ आएंगे।पिछले साल सरकार ने १३० लाख टन खरीदी का लक्ष्य तय किया था लेकिन धान की खरीदी १४४,९२ लाख टन की गई थी। यानी १४ लाख टन धान की खरीदी ज्यादा की गई थी।इस बार १८० लाख टन की खरीदी का अनुमान यानी ३६ लाख टन धान की ज्यादा खरीदी होगी। माना जाता है कि हर साल किसानों की संख्या कम से कम एक लाख तो बढ़ती ही है। यानी इस बार एक लाख ज्यादा किसानों ज्यादा धान बेंचेंगे और उनको ज्यादा पैसा मिलेगा। इससे निश्चित रूप से किसानों की आर्थिक हालत और सुधरेगी।
सरकार किसानों का ज्यादा धान खरीदे यह अच्छी बात है। साथ ही उसे जो धान खरीदा गया है , उसकी कस्टम मिलिंग व रखरखाव की भी अच्छी व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि किसानों को जो धान खरीदा गया है, वह खराब न हो। उसका राज्य और देश में सदुपयोग हो।भूपेश बघेल के समय से सरकार की कोशिश होती है कि वह पिछली बार से ज्यादा धान खरीदे भले ही उतना धान सुरक्षित रखने की व्यवस्था न हो। यही सिलसिला साय सरकार के समय भी जारी है यदि साय सरकार ३६ लाख टन धान ज्यादा खऱीदने की सोच रही है तो उसके रखने की व्यवस्था के बारे में सोचना चाहिए और इंतजाम करना चाहिए। किसानों का दाना-दाना खरीदना बहुत ही अच्छी बात है लेकिन किसानों के दाने-दाने का सदुपयोग हो तो यह किसानों को भी अच्छा लगेगा और राज्य के लोगों को भी अच्छा लगेगा।
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