प्रतिभा कुदरती होती है,वह किसी में भी हो सकती है। उस पर किसी जाति,धर्म,भाषा,वर्ग का एकाधिकार नहीं होता है। कोई भी,कहीं भी, किसी भी घर परिवार के किसी सदस्य में किसी न किसी तरह की प्रतिभा होती है। प्रतिभा हमेशा मानव समाज का सबसे अच्छा हिस्सा होता है, जैसे दूध का सबसे परिष्कृत रूप घी होता है।जैसे गन्ने का सबसे परिष्कृत रूप मिश्री को माना जाता है, उसी तरह मानव समाज का सबसे परिष्कृत रूप प्रतिभावान मनुष्य होता है। यही मनुष्य समाज के कल्याण का काम करता है, भले का विचार करता है,मनुष्य समाज को बताता है कि उसके लिए अच्छा क्या है, बुरा क्या है।इसलिए मनुष्य समाज में हर दौर में प्रतिभावान मनुष्य का सम्मान किया गया है। उसका ख्याल रखा गया है।
आज हमारे पास पहले से बेहतर व्यवस्था है।हर स्तर पर प्रतिभावान मनुष्य की पहचान का। हर स्तर पर उसकी पहचान की जा सकती है।उसका ख्याल रखा जा सकता है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि प्रतिभा की पहचान निचले स्तर पर नहीं हो पाती है। मदद करने वाले तो निचले स्तर पर भी होते हैं लेकिन प्रतिभावान बालक या युवा को कोई मदद नहीं करता है या वह मदद करने वालों तक नहीं पहुंच पाता है या मदद करने वाले उन तक नहीं पहुंच पाते हैं। मात्र इसी वजह से देश के कई प्रतिभावान छात्र व युवा जो शिक्षा वह पाना चाहते हैं, उनको मिलती नहीं है और उनकी प्रतिभा पहचान न होने के कारण मनुष्य समाज के जितनी काम आ सकती थी, काम नहीं आ पाती है।
यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के टिटोरा गांव में रहने वाले अतुल कुमार के साथ भी ऐसा हो सकता था। एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा अतुल कुमार मात्र १७५०० रुपए जमा न कर पाने के कारण आईआईटी धनबाद में प्रवेश से वंचित रह गया। उसके गरीब मातापिता के पास तय तारीख तक जमा करने के लिए इतने पैसे नहीं थे।उसके माता-पिता ने आईआईटी की सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण,मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कोई भी उसे आईआईटी में प्रवेश नहीं दिला पाया। यह काम आखिर में देश के सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट भी यह काम तब ही कर पाया जब उसके पास उसके पास ऐसा करने का अधिकार था। अगर उसके पास संविधान के अनुच्छेद १४२ के तहत असाधारण शक्तियां नहीं होती तो वह भी नहीं कर पाता।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इसी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए आईआईटी धनबाद को आदेश दिया कि प्रवेश से वंचित अतुल कुमार को संस्थान के इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग बीटेक पाठ्यक्रम मेें दाखिला दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करके देश के उन तमाम गरीब और प्रतिभाशाली बच्चों को ऐसा रास्ता दिखाया है जो उनको अब तक पता नहीं था। हमारे देश में शिक्षा मूलभूत अधिकार है।इसलिए राज्य व केंद्र सरकार दायित्व है कि देश में कोई भी शिक्षा से वंचित न रहे। खासकर अगर कोई प्रतिभाशाली बच्चा है या युवा है तो उसकी मदद निचले स्तर पर ही करने की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उसे सुप्रीम कोर्ट तक जाने की जरूरत न हो।
जहां तक एक दो प्रतिभाशाली बच्चों की बात है तो हर समाज में ऐसी व्यवस्था होती है, हर समाज के प्रतिभाशाली बच्चों को इसका लाभ भी मिलता है। इसके अलावा मान लो प्रतिभाशाली किसी गरीब समाज का है तो राज्य या जिले के अमीर लोगों को मिलकर ऐसा कोष बनाना चाहिए जिससे प्रतिभाशाली बच्चों व युवाओं की आर्थिक मदद की जा सके। सरकार को भी अपने शिक्षा बजट में ऐसे कोष की स्थापना करनी चाहिए जिससे अतुल कुमार जैसे प्रतिभाशाली युवा की मदद निचले स्तर पर की जा सके। १७५०० रुपए तो इतनी छोटी सी रकम है कि राज्य का सीएम,मंत्री, सांसद व विधायक भी अतुल कुमार को दे सकते थे। उसका प्रवेश करा सकते थे।
अतुल कुमार इन लोगों तक नहीं पहुंच सके तो इन लोगों को अतुल कुमार तक पहुंचना था मदद के लिए। इसमें मीडिया की भूमिका अतुल कुमार को मदद दिलाने की हो सकती थी। मीडिया उसको मदद मिलने के बाद बता रहा है कि मदद कैसे मिली। मीडिया ने उसकी परेशानी को उजागर किया होता तो उसकी मदद यूपी में ही हो जाती।अतुल कुमार को मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा यह देश,समाज व सरकार की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान है।माना जाता है कि देश में करीब २४ फीसदी गरीब छात्र उच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। हमारी सरकारों के साथ शिक्षण संस्थानों को कोशिश करनी चाहिए कि गरीब व प्रतिभाशाली छात्र उनके संस्थानों में महज पैसे की कमी की वजह से प्रवेश से वंचित न रह जाए।ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि कोई भी गरीब छात्र पैसे की कमी से संस्थान में प्रवेश से वंचित न रहे। किसी निराश अतुल कुमार को सुप्रीम कोर्ट तक न जाना पड़े।
सबसे अच्छी सभी को याद रखने वाली बात तो यह है कि इस मामले में सीजेआई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा की पीठ ने जो कहा है।उन्होंने कहा है कि हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक को अवसर से वंचित नहीं कर सकते, उसे मंझधार में नहीं छोड़ सकते। जो काम समाज, सरकार का था, वह काम सुप्रीम कोर्ट ने किया अच्छी बात है, उसने एक मिसाल पेश की है कि प्रतिभाशाली मदद मांग रहा है, उसे मदद की जरूरत है तो उसकी मदद करना देश,सरकार व समाज का काम है। उसे मदद जरूर मिलनी चाहिए।
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