छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पिछले कई दशक ने गंभीर समस्या रहा है। इसके समाधान के प्रयास तो हुए लेकिन गंभीर प्रयास नहीं किए गए।क्योंकि नक्सलियों के सफाए के लिए कभी सोचा ही नहीं गया। सब मानकर चलते थे नक्सलियों का सफाया संभव ही नहीं है। यह बस्तर में है और आने वाले समय में भी रहेंगे। इसी सोच के कारण बस्तर में बने रहे और मजबूती से बने रहे, मजबूत रहे,आक्रामक रहे और जवानों पर अक्सर भारी भी पड़ते रहे।जवान कभी बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार नहीं पाते थे जबकि नक्सली अक्सर जवानों को घेर कर बड़ी संख्या में मार दिया करते थे। इससे मरने व नुकसान का डर जवानों में ज्यादा रहता था और नक्सलियों में कम रहता था।
अमित शाह व साय सरकार ने बस्तर में अपनी आक्रामक रणनीति के चलते वहां की स्थिति को पूरी तरह बदल कर रख दिया है।अमित शाह व सीएम साय की जोड़ी ने वह काम छत्तीसगढ़ में किया है जो काम इससे पहले कोई नहीं कर सका।अब जान जाने का खौफ नक्सलियों में ज्यादा है, क्योंकि वह आए दिन टारगेटेट आपरेशन में बडी संख्या में मारे जा रहे हैं।हर बार पहले से ज्यादा नक्सली मारे जा रहे है। इससे जवानों में बड़ा उत्साह है कि वह नक्सलियों का सफाया योजना के अनुसार करने में सफल हैं और नक्सलियों में भारी खौफ के साथ घोर निराशा है कि वह पहले की तरह कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
जवानों के आपरेशन के दौरान जितनी बड़ी संख्या में नक्सली मारे जा रहे हैं, उससे नक्सलियो में मारे जाने का खौफ उतना ही बढ़ता जा रहा है। अमित शाह व सीएम साय ने तो पहले ही उनको साफ कर दिया है कि सरेंडर नहीं करोगे तो मारे जाओगे, उनके पास दो ही रास्तें है, या तो सरेंडर करो या मारे जाओ। आए दिन आपरेशन के दौरान बड़ी संख्या मेें नक्सलियों के मारे जाने से नक्सली बुरी तरह डरे हैं और इसी डर के कारण आए दिन बड़ी संख्या में नक्सली सरेंडर भी कर रहे हैं। साय सरकार की यह बड़ी सफलता है कि उसने आए दिन बड़ी संख्या में नक्सलियों का सफाया कर उनके मन में यह डर बिठा दिया है कि अब आप लोगों को दिन पूरे हो गए हैं, अब आप बच नहीं सकते, आए दिन आपको इसी तरह मार दिया जाएगा। इसी डर के कारण नक्सली दूसरे राज्य पलायन भी कर रहे हैं और आए दिन बस्तर में सरेंडर भी कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि बस्तर में नक्सलियों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है और उनके संगठन मेंं लोग शामिल होने से भी डर रहे हैं।
बस्तर में जवानों की तैनाती के बाद कोई भी इलाका उनके लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। वह जहां भी कैंप लगाते या एकत्र होते हैं तो उसकी सूचना जवानों को मिल जाती है और यह इतनी सटीक होती है कि जवानों को उनको घेरकर मारने में कोई दिक्कत नहीं होती है।४ अक्टूबर तो थूलथूली के जिस जंगल में नक्सलियों को घेर कर मारा गया है वह इलाका भी नक्सली अपने लिए सुरक्षित मानकर चल रहे थे। यहां ३० से ४० नक्सलियों के होने की खबर थी। खबर मिलते ही पूरी तैयारी के साथ सैकड़ों जवान निकले और नक्सलियों का घेर कर इस तरह मारा कि वहां मौजूद ज्यादातर नक्सली मारे गए।
पहले नक्सली मुठभेड़ के बाद अपने साथियों का शव तक ले जाने में सफल हो जाते थे। वह मुठभेड़ होती है तो जवानाें की मजबूत घेराबंदी के चलते एक शव नहीं ले पाते हैं। शव मिलने पर ही साफ होता है कि मारा गया नक्सली कौन है, उसका नाम क्या है,उस पर कितना ईनाम है। उसके खिलाफ कितने मामले थे। पांच अक्टूबर की सुबह तक ३१ नक्सलियों के शव बरामद किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में नक्सली छत्तीसगढ़ मे पहली बार मारे गए है। मौेके से बरामद हथियार को देखते हुए माना जा रहा है कि मारे गए नक्सलियों में कुछ ईनामी नक्सली भी हो सकते हैं। राज्य में यह नक्सलियों की अब तक की गई घेराबंदी में सबसे तगड़ी घेराबंदी थी यही वजह है कि जवानों ने नक्सलियों का भागने का कोई मौका नहीं दिया।यह साय सरकार की सबसे बड़ी सफलता है।
कांग्रेस इस तरह की ब़ड़़ी सफलता पर पहले भी सवाल उठाती रही है, हो सकता है कि वह आने वाले दिनों में फिर यही करे।इससे वह खुद ही सवालों के घेरे में आ जाएगी। साय सरकार जिस तरह नक्सली मोर्चे पर बड़ी बड़ी सफलता प्राप्त कर रही है इसी तरह वह कानून व्यवस्था के मामले में काम करे तो कांग्रेस को कुछ कहने व करने का मौका ही न मिले।यही वजह है कि कांग्रेस कानून व्यवस्था को ही राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर साय सरकार को असफल साबित करने का प्रयास कर रही है।हकीकत यह है कि नक्सलियों के सफाए के मुद्दे पर साय सरकार ने सबसे बड़ी सफलता हासिल की है तो उसके सामने कांग्रेस के उठाए सारे मुद्दे कमजोर साबित होंगे।साय राज्य के सबसे सफल सीएम साबित होंगे।
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