कई लोग कहते हैं कि लोकतंत्र आंदोलन से ही जिंदा लगता है। जिस देश व जिस राज्य में आंदोलन होते रहते हैं,वहीं ऐसा लगता है कि लोकतंत्र है देश में।लोकतंत्र का जिंदा रखने काम जितना विपक्ष को होता है, उससे ज्यादा अधिकारी,कर्मचारी संगठनों का होता है। अधिकारी,कर्मचारी संगठन भी सरकार के लिए किसी विपक्ष से कम नहीं होते हैं। कोई भी सरकार हो , वह विपक्ष से जितनी परेशान रहती है,उससे ज्यादा कर्मचारी संगठनों से परेशान रहती है। हर राज्य में कई तरह के कर्मचारी संगठन होते हैं। छोटे संगठन भी होते हैं, बडे संगठन भी होते हैं। सब संगठनो की अपनी मांगे होती है, संगठन मतलब ही होता है कि सरकार के सामने मांग रखना और उसे पूरा कराना । राज्य में कोई भी सरकार हो सब यही करते हैै। सब संगठनों की ज्यादातर मांगे नई नई सुविधा और ज्यादा पैसे की होती है। हर संगठन इस मामले में बड़ा सजग होता है कि किसी राज्य उनके जैसे कर्मचारी को कितना पैसा मिल रहा है, कितनी सुविधाएं मिल रही है। किसी एक राज्य में कर्मचारी या अधिकारी वर्ग का पैसा,सुविधाएं जैसे बढ़ती है. उसके बाद एक एक सभी राज्यों मे ंकर्मचारियों का आंदोलन शुरू हो जाता है।तब तक चलता रहता हैजब तक वह सब मिल नहींं जाता है। कर्मचारियों व अधिकारियों की मांग यदि एक सरकार पूरी नहीं करती है तो वह दूसरी सरकार से वही मांग करते हैं। आम आदमी की तुलना में शासकीय कर्मचीर व अधिकारी सरकार के लिए ज्यादा मायने रखते हैं। क्योंकि एक तो वह शासकीय कर्मचारी होते हैं, दूसरे वह बड़ा वोट बैंक भी होते हैं। हर कोई उन्हे चुनाव के पहले खुश रखना चाहता है। जो दल सत्ता में नहीं है, वह सत्ता में आना चाहता है तो वह कर्मचारी कुछ भी मांग करें,वह उसे सही बताता है और उनका समर्थन करता है। उनका समर्थन करने वाला दल जब सत्ता में आता है तो कर्मचारी व अधिकारी उसे याद दिलाते हैं कि तुमने तो हमारी मांगों का समर्थन किया था अब हमारी बदौलत सत्ता में आ गए हो तो हमारी साीर मांगे पूरी करो। जब भूपेश बघेल की पार्टी को सत्ता में आना था तो उसने कर्मचारी संगठनों की जो भी मांगे थी सबको पूरा करने का वादा किया था।चाहे वह नियमितीकरण हो, मानदेय बढ़ाना हो, महंगाई के चलते भत्ता बढ़ाना हो। भूपेश बघेल की पार्टी की अब सरकार है तो हर महीने कोई न कोई संगठन आंदोलन कर रहा है। इससे ऐसा लग सकता है, राज्य के अधिकारी कर्मचारी काम कम आंदोलन ज्यादा करते हैं। इसका दूसरा पहलू यह है कि इसके लिए कर्मचारी संगटन पूरी तरह दोषी नहीं है, राजनीतिक दल भी दोषी होते हैं। कभी कर्मचारी संगठनों की तमाम मांगोंका समर्थन कांग्रेस ने किया था, आज उसे कर्मचारी संगटनों के आंदोलनों का सामना कर पड़ रहा है।आज भाजपा सत्ता में नहीं है तो वह तमाम आंदोलन करनेवाले कर्मचारी व अधिकारियों के आंदोलन व उनकी मांगो का संमर्थन धरना स्थल पर जाकर कर रही है। क्योंििक भाजपा को सत्ता में आने के लिए उनके वोट की जरूरत होगी। राज्य के लाखों कर्मचारी अधिकारी इन दिनों हड़ताल पर हैं, इसका जितना नुकसान सरकार को नहीं होता है, उससे ज्यादा परेशानी आम लोगों को होती है। सरकार कर्मचारी संगठनों की जायज मांगों को तुरंत पूरा कभी नहीं करती है। वह नही चाहती है कि कर्मचारी संगटनों को यह संदेश जाना चाहिए कि सरकार उनकी मांग जल्द मानने वाली है। सरकार के लिए मांम मानने का मतलब होता है कि अपना खर्च बढ़ाना। ज्यादा पैसा कर्मचारी व अधिकारियों पर खर्च होगा तो सरकार दूसरे कामों में खर्च कैसे करेगी। सरकार संगटनों को आंदोलन करने देती है,एहसास दिलाती रहती है कि तुम लोगों की मांग मानने लायक नहीं है, सरकार बाद में मान लेती है। यही राज्य मे ंचलता रहता है इससे राज्य मेें लोकतंत्र जिंदा रहता है, राज्य सरकार तानाशाह नहीं बन पाती है।
.कोई भी अभियान तब सफल होता है जब उसके नेतृ्त्व करने वाले को पूरा भरोसा होता है कि हम ऐसा कर सकते हैं।नेतृत्व को टीम पर भरोसा होता है कि तय समय पर ट...
राजनीतिक दल की बैठकें होती रहती है, चुनाव में हार के बाद बैठक होती है तो नेता व कार्यकर्ता उम्मीद करते हैं कि बैठक में हार के कारणों पर भी चर्चा हो...
राजनीति में सत्ता व कुर्सी महामोह है। जो भी राजनीति में है, वह इस महामोह से बच नहीं पाता है।वह सोचता है कि सत्ता मिली है तो अब हमेशा उसके पास रहे, ...
देश हो राज्य हो धर्मातंरण गंभीर समस्या तो है,इसे रोकने की मांग जब-तब संसद में विधानसभाओं मेंं की जाती है,मांग की जाती है कि इसे रोकने के लिए और कड़...
राजनीति में वही राजनीतिक दल ज्यादा सफल होता है जिसकी नीति आईने की तरफ साफ होती है। जैसी है वैसी दिखाई भी देती है।
कहावत है कि बोया बीज बबूल को तो आम कहां से होय।हमेशा ऐसा हो होता है कि बबूल का बीज बोने पर बबूल के कांटेवाले पेड़ ही होते हैं