अभिव्यक्ति की आजादी से लोकतंत्र मजबूत होता है। इसका मतलब होता है कि हर किसी को बराबर बोलने की आजादी है। इसका मतलब यह नहीं होता है कि आप को बोलने का मौका मिला तो आपने जो जी चाहा बोल दिया और दूसरे की बोलने की पारी आई तो आप उसके बोलने के दौरान निरंतर हल्ला करें। यह तो किसी के बोलने का खुला विरोध है। अगर आपको संसद में बोलने का अधिकार है तो इसी के साथ ही आपको दूसरों की बातें धैर्य से सुनना भी आपकी जिम्मेदारी है।
हर अधिकार के साथ जिम्मेदारी जुड़ी होती है। आप अधिकार का उपयोग करना चाहते हैं और जिममेदारी नहीं निभा नहीं रहे है तो आप लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। आप संसद-संविधान का अपमान कर रहे हैं। जनता ने आपको लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए नहीं चुना है, जनता ने आपको संसद-संविधान का अपमान करने के लिए नहीं चुना है। अगर आप जय संविधान कहते है तो आपको मालूम होना चाहिए कि संविदान की जय सिर्फ संविधान की प्रति लहताने से नहीं होती है। संविधान की जय तो तब होती है जब आप दूसरों के बोलने के अधिकार की भी सम्मा्न करें। बात जब संसद की हो तो बोलने के आधिकार का सम्मान सबको अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
अगर कोई संसद में किसी के बोलने के दौरान निरंतर शोर कर रहा है तो इसका मतलब तो यही होता है कि आप दूसरों को बोलने नहीं देना चाहते हैं। किसी बोलने न देन तो तानाशाही है, संविधान का घोर अपमान है। संसद में किसी बात पर अपना विरोध दर्ज कराने का अधिकार है। इस अधिकार का उपोयग पीएम मोदी से लोकर अमित शाह व राजनाथ सिंह किया। राहुल गांधी सहित कांग्रेस व विपक्ष के नेताओं को सीखना चाहिए कि संसद के भीतर विरोध कैसे किया जाना चाहिए। संसद में राहुल गांधी ने जब डेढ़ घंटे बोला तो भाजपा नेताओं ने सुना। जहां विरोध दर्ज कराा था, वहां नियम के मुताबिक विरोध दर्ज भी कराया।
राहुल गांधी व विपक्ष के नेता चाहते तो वह भी ऐसा कर सकते थे लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में तो निरंतर पीएम मोदी के बोलने के दौरान हल्ला कर बता दिया कि वह न तो लोकतांत्रिक हैं और न ही संविधान का सम्मान करते हैं। ऐसे में तो देश में यही माना जाएगा कि राहुल गाधी व विपक्ष के नेता तो तानाशाह है, वह खुद बोलने के अधिकार का उपयोग करना चाहते हैं और दूसरे के बोलने के अधिकार का सम्मान नहीं करते हैं। लोकसभा की तहह राज्यसभा में भी पीएम मोदी के बोलने के दौरान हल्ला किया गया और बाद में पीएम मोदी की कोई बात पसंद नहीं आई तो उठकर चले गए।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कांंग्रेस नेता अपना पक्ष रखने के बाद दूसरे के पभ को नहीं सुनते हैं। पिछली बार भी यही हुआ था। इससे कांग्रेस व विपक्ष की साथ मिरती है। माना जाता है कि उनके पास कहने को, बहस करने को कोई तर्क नहीं होता है, कोई प्रमाण नहीं होता है तो वह सिर्फ हल्ला करते हैं। लोकतंत्रम में पक्ष व विपक्ष दोनों से अपेभा की जाती है कि वह एक दूसरे के बोलने के अधिकार का सम्मान करें। अपनी बात करहने के बाद दूसरे की बात सुनने की जिम्मेदारी भी निभाएं।
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